________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किणिमंत्रमाह // वाग्बीजमिति // अधराक्रांतोनकुलीऐंयुतोहः // शांतिचंद्राढयमाकाशंई बिंदुयुतो हः॥ सदृक्जलंवि भगाक्रान्तंकूर्मद्वंद्वंऐयुतंचंद्रद्वंद्वंचयथा // ऐंहींकिणि 2 विच्चेइति // 66 // 67 // 68 // एवंसरस्वत्यष्टकंसंपूज्य // क्षोभमुद्रादर्शनं // तल्लक्षणं // मध्यमामध्यमेकृत्वाकनिष्ठांगुष्ठरोधिते // तर्ज त्रीहुंफट्नवाणेननीलामञदुदग्दिशि // वाग्वीजमधराक्रांतोनकुलीबिंदुमान्पुनः // 67 // शांतिचं द्राढयमाकाशंकिणिद्वंद्वंसहग्जलम् ॥कूर्मद्वंद्वंभगाक्रांतनवाणेनामुनायजेत् // 68 // मंत्रणेशानदिग्भागे किणिसंज्ञासरस्वतीम् // पंचमावृत्तिमाराध्यक्षोभमुद्रांप्रदर्शयेत् // 69 // डाकिन्याद्याःपूर्वमुक्ताः षट्कोणेषट्प्रपूजयेत् // दर्शयेद्राविणीमुद्रांषष्ठावरणपूजने // 70 // न्यौदंडवत्कृत्वामध्यमोपर्यनामिके॥क्षोभाभिधानामुद्रेयंसर्वसंक्षोभकारिणीति // 69 // डाकिन्याद्या पूर्वो ताः // डाकिनीराकिनीलाकिनीकाकिनीशाकिनीहाकिन्यः // द्राविणीमुद्रालक्षणं यथा क्षोभमु SHIPालक्षणमुत्कोक्तम् / / एतस्याएवमुद्रायामध्यमेसरलेयदा॥क्रियतेपरमेशानितदाविद्राविणीमतेति॥ 70 // For Private and Personal Use Only