________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नपूर्णानवमेतरंगेउक्ता तेनोत्तरेतायजेत् // यथा // ॐहीं श्रींक्तींनमोभगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णस्वाहाअन्न पूर्णाश्रीपादुकांपू०उत्तरे // 66 / / रत्नपंचकेसिद्धलक्ष्मीमंत्रमाह // वाणीति // वाणीबीजऐं // कामबीज क्लीं // वराहहंसाग्निवर्णाहसराः ॥औसर्गयुताइस्क्रौः // स्वरूपमन्यत् // यथा // ऐंक्लिनेकींमदद्वेकुले Bहसौःसिद्धलक्ष्मीश्रीपा पूर्वे // 67 // दक्षिणेमात्तंगीं // 68 // तन्मन्त्रमाह // वागिति // वाऐं // | विंशत्यर्णान्नपूर्णोक्तातरंगेनवमेमया // तन्मत्रेणोत्तरस्यांतुपूजयेदन्नदायिनीम् // 66 // वाणीवी | ततःक्किन्नेकामवीजमदद्रवे // कुलेवराहहंसाग्निवर्णाऔसर्गसंयुताः // 67 // एकादशाक्षरोमंत्रः सिद्धलक्ष्म्याःसमीरितः // तेनतांपूजयेत्पूर्वेमातंगींदक्षिणेपुनः // 68 // वाक्कामःसौःपुनर्वाणीमा यालक्ष्मीधुंवोनमः॥ भगवंतोतिमातंगीश्वरिसर्वजनार्णकाः // 69 // मनोहरिपदंप्रोच्यसर्वराजवशंकरि॥ सर्वातेमुखरंजिनीमेषोनेत्रसमन्वितः // 70 // सर्वस्त्रीपुरुषान्तेतुवशंकरिपदंवदेत् // सर्वदुष्टमृगप्रां तेवशंकरिपुनःपदम् // सर्वलोकवशंपश्चातकरिमायांरमांगजः // 71 // कामाक्लीं // वाणीऐं / मायाह्नीं // लक्ष्मीःश्रीं॥ध्रुवॐ॥६९॥नेत्रसमन्वितोमेषोनानी॥ रमाश्रीं // अंगजाकीं। स्वरूपमन्यत् // यथा // ऐक्लींसौःऐंहीश्रींॐनमोभगवतिमातंगीश्वरिसर्वजनमनोहरिसर्वराजवशंकरिसर्व मुखरंजिनिसर्वस्त्रीपुरुषवशंकरिसर्वदुष्टमृगवशंकरिसर्वलोकवशंकरिहीं श्रींक्तींऐंमातंगीश्रीपा०॥ 70 // 7 // For Private and Personal Use Only