________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म०पार्वतीह्रीं // माययादीर्घाढययाषडङ्गम् // षडङ्गक्रमेण ध्यानान्याहनानेति // 112 // 113 // 114 // स्वाहांतःषोडशाोयमंत्र-शत्रुविनाशनः॥ विधाताष्टिऋषिश्छंदःपर्वताध्यग्निवायवः।।१२॥धराकाशौ | // 77 // महापू देवताःपरिकीर्तिताः // हुंबीजंपार्वतीशक्तिर्माययातुषडंगकम् // 13 // नानारत्नाचिराक्रां तंवृक्षांभःस्रवणैर्युतम् ॥व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तंसानुयुक्तंगिरिस्मरेत् // 14 // मत्स्यकूर्मादिवीजाव्यं नवरत्नसमन्वितम् // घनच्छायंसकल्लोलमकूपारंविचिंतयेत् // 15 // ज्वालावतीसमाक्रांतजगत्रितयम द्रुतम् // पीतवर्णमहावह्निसंस्मरेच्छत्रुशांतये // 16 // धरासमुत्थरेण्वौषमलिनरुद्धभूदिवम् // पवनसंस्मरेद्विश्वजीवनंप्राणरूपतः॥१७॥ नदीपर्वतवृक्षादिकलिताग्रामसंकुला।आधारभूताजगतोध्ये यापृथ्वीहमंत्रिणा॥३८॥सूर्यादिग्रहनक्षत्रकालचक्रसमन्वितम् ॥निर्मलंगगनंध्यायेत्प्राणिनामाश्रयप्रदम् // 19 // एवंषड्देवताध्यात्वासहस्राणितुषोडश // जपेन्मंत्रंदशांशेनषद्रव्योममाचरेत् // 120 // अकूपारंसमुद्रम् // 115 // 116 // प्राणरूपेणविश्वंजीवयतीतिविश्वजीवनम् // 117 // 118 // 119 // 120 // 1 ॐअंकंचंटतपहलोंह्रीहंसाहुंफट्स्वाहेतिषोडशाणः // 2 अस्यमंत्रस्यब्रह्माऋषिःअष्टि छंदःमहापर्वतमहाब्धिमहाग्निमहावायुमहाधरा महाकाशापट्देवता हुंबीजंहीशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // // 77 // For Private and Personal Use Only