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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मं०म० सटीक // 16 // त. गगनक्षोण्यौहलो // चंद्रोबिंदुः॥ तेनहांहींहलूमिति // अंतिमाक्षः॥ भगीएयुताक्षे // यथा ॥रवौहरिद्रारो चनाकुष्ठतगरैर्गोमूत्रपिष्टेहरिद्रारंजितेवस्त्रेऽष्टदलंकृत्वाऽमुकंस्तंभयेतिमध्ये ॥ॐॐग्लौंग्लौंचटचटेतिवर्णान्द लेधुलिखेत् // तद्वस्त्रंपीतवस्त्रंसूत्रेणसंवेष्टयकोकिलतरोःसप्तकंटकैर्विद्यार्कपत्रैःसंवेष्टयवल्मीकरंधेप्रक्षिप्यमे लिखेदष्टलदलंपरिपुनामाव्यकर्णिकम् // दलेषुविलिखेत्तारद्वयंभूवीजयुग्मकम् ॥५२॥चटद्वयंततो यंत्रपीतसूत्रेणवेष्टयेत् // कोकिलाख्यतरोःसप्तकंटकै परिकीलितम् // 53 // भानुवृक्षदलैःसम्यग्वेष्टि तंनिक्षिपेत्पुनः॥ वल्मीकरंधेमेषस्यमूत्रेणोपरिपूरयेत् // 54 // अश्मानरंध्रवदनेनिधायाश्मस्थितः सुधीः // सहस्रप्रजपेन्मंत्रंनिशाचरदिशामुखः // 55 // निशयानिर्मितैरक्षैःसमंत्रोच्यतेऽधुना // प्रणवोगगनक्षोण्यौचंद्रदीर्घत्रयान्वितैः // 56 // षमूत्रमुपरिसिक्त्वा रंध्रीपरिशिलांसंस्थाप्यतत्रस्थितोऽमुंमंत्रहरिद्रामणिभिःसहस्रंजपेन्नैर्ऋत्याभिमुखः // मंत्रोयथा // ॐहाहींहलू कामाक्षिमायारूपिणिसर्वमनोहारिणिस्तंभय 2 रोधय 2 मोहय 2 काली कूलूंकामाक्षेकाहेश्वरिहुंहुंहुमिति // एवंकृतेरिपुस्तंभः॥५२॥५३॥५४॥५५॥५६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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