________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BA/सटीक // 22 // Baत०२ मं०म० हरिद्रागणेशमनुमाह ॥तारइति॥तारओं वर्महुँगणेशोगंभू-लौ लोहितःपः॥ आषाढीतः।सत्योदः॥ तर्ज नीतः। स्वर्णरेतसोवल्लभास्वाहा // स्वरूपमन्यत् // यथा // ओहुंगंग्लौहरिद्रागणपतयेवरवरदसर्वजनहृदयं तारोवर्मगणेशोभूहरिद्रागणलोहितः // आषाढीयेवरवरसत्यःसर्वजतर्जनी // 122 // हृदयं स्तम्भयद्वंद्ववल्लभांस्वर्णरेतसः // द्वात्रिंशदक्षरोमंत्रोमदैनोमुनिरीरितः // 123 // छन्दोनुष्टुब् देवतातुहरिद्रागणनायकः // वेदाष्टशरसप्ताङ्गनेवाणैरङ्गमोरितम् // 124 // पाशाङ्कुशौमोदकमेकंद न्तंकरैर्दधानंकनकासनस्थम् // हरिद्रखण्डप्रतिमंत्रिनेत्रंपीतांशुकंरात्रिगणेशमाडे // 125 // वेदल संजपित्वान्तेहरिद्राचूर्णमिश्रितैः॥ दशांशंतण्डुलैर्तुत्वाब्राह्मणानपिभोजयेत् // 126 // पूर्वोक्तपीठेप्र यजेदङ्गमातृदिशाधवैः॥ एवमाराधितोमंत्रस्सिद्धोयच्छेन्मनोरथान् / / 127 // शुक्लपक्षेचतुर्थ्यांतुक न्यापिष्टहरिद्रया // विलिप्यांगंजलेस्नात्वापूजयेद्गणनायकम् // 128 // स्तंभयर स्वाहेतिद्वात्रिंशद्वर्णः // 122 // 123 // षडंगमाह // वेदेति // 124 // ध्यानमाह // पाशेति // अंकुशमोदकौदक्षयोः॥पाशदन्तावन्ययोः॥रात्रिगणेशोहरिद्रागणपतिः॥ 125 // 126 // 127 // 128 // 1 अस्यहरिद्रागणनायकमंत्रस्यमदनऋषिःअनुष्टुप्छन्द हरिद्रागणनायकोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // 22 // For Private and Personal Use Only