________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Raआकर्षणमनुश्चत्वारिंशदर्णः // प्रयोगश्च // कृष्णाष्टम्यांकृष्णचतुर्दश्यांवाकुजरव्यन्यतरयुक्तायांप्रातर्ना भिमाजलेस्थित्वा मूलमेकादशशतंप्रजप्य गृहमागत्यशरीरंतैलेनाभ्यज्यपीटजनैनराकारंयोषिदाकारं वाविलिख्यलज्जावतीपत्रैस्तंसंपूज्यलज्जावतीमूलरसेनसंप्रोक्ष्यतदग्रेऽमुंमंत्रषष्टयाधिकंशतंजपेत् // मंत्री alयथा // ॐनमः कालिकायैसर्वाकर्षण्यैअमुकीमाकर्षय 2 शीघ्रमानय 2 आह्वींकोंभद्रकाल्यैनमः पाशोमायांकुशंभद्रकाल्यैहृदयमंततः॥ चत्वारिंशल्लिपिमंत्र-प्रोक्तआकर्षणक्षमः // 72 // शतंषष्टयाधि कंजवालोहितःकरवीरजैः // पंचाशत्प्रमितैमैत्रीपूजयल्लिखिताकृतिम् // 73 // मातृकावर्णमेकैक तन्नामाकर्षयद्वयम् // नमइत्यभिसंजप्यपुष्पमेकैकमर्पयेत् // 74 // इति // ततःपंचाशत्करवीरपुष्पैः // अंअमुकीम् आकर्षय 2 नमः आंअमुकीमित्यादिपंचाशद्वर्णपूर्वकमे तजपन्तमाकारंपूजयेत् // धूपदीपनैवेद्यंकृत्वातदग्रेनिंप्रतिष्ठाप्यतत्राज्याक्तचणकैः शतमधुनोक्तमनुना हुत्वाकुमारीकर्तितेनकृष्णकार्पाससूत्रेणाष्टाविंशतितंतुनिर्मितंस्वदेहमितंदोरकंकृत्वाकर्षमंत्रेणाष्टोत्तरशतं ग्रंथीन् दत्वातद्धारणानरंनारींचाकर्षतीति // 72 // 73 // 74 // For Private and Personal Use Only