________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org षडंगमाह // ज्वलेति // ज्वलरमहामतिस्वाहाहृत् // गरुडचूडाननस्वाहाशिरः // गरुडशिखेस्वाहा शिखा // गरुडप्रभंजयरप्रभेदय 2 वित्रासयरविमर्दयरस्वाहावर्म // 118 // उग्ररूपधरसर्वविषहरभी Nषय 2 सर्वदहरभस्मीकुरुरस्वाहानेत्रम् // अप्रतिहतबलाप्रतिहतशासनहुंफट्स्वाहाअस्त्रम् // वर्णन्यास ज्वलज्वलमहामतिस्वाहाहृदयमीरितम् // गरुडेतिपदस्यांतेचूडाननशुचिप्रिया // 18 // शिरोमं बोगरुडतःशिखेस्वाहाशिखामनुः // गरुडार्णानुदित्वांतेप्रभंजययुगंवदेत् // 19 // प्रभेदययुगंपश्चा द्वित्रासयविमर्दय // प्रत्येकंद्विस्ततःस्वाहाकवचेमनुरीरितः॥१२०॥ उग्ररूपधरांतेतुसर्वविषहरेतिच॥ भीषयद्वितयंप्रोच्यसर्वदहदहेतिच // 21 // भस्मीकुरुकुरुस्वाहानेत्रमंत्रोयमीरितः // अप्रतिहतवर्णी तेवलाप्रतिहतेतिच // 22 // शासनांतेतथाईफट्स्वाहास्त्रमनुरीरितः॥ पादेकटौहदिमुखेमूर्ध्निवर्णा नप्रविन्यसेत् // 23 // तप्तस्वर्णनिभंफणींद्रनिकरैःकृप्तांगभूपंप्रभुस्मर्तृणांशमयंतमुग्रमखिलंनृणांवि पंतत्क्षणात्॥चंच्वग्रप्रचलढुजंगमभयंपाण्योर्वरंविभ्रतंपक्षोच्चारितसामगीतममलंश्रीपक्षिराजभजे॥२४॥ माह // पादइति // 119 // 120 // 121 // 122 // 123 / / ध्यानमाह // तप्तति // स्मर्तृणांनणामुग्रं विषततक्षणाच्छमयति // दक्षेवरम् ॥पक्षाभ्यामुच्चारितासाम्राबृहद्रथंतरादीनांगीतयोयेनतम्॥ वृहद्रथंतरे पक्षावितिश्रुतेः // 124 // For Private and Personal Use Only