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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिदशाइंद्रादयः॥ 63 // 64 // 65 // मातंगीमाह // तार इति // तारॐ मायाह्रीं / वाऐं // लक्ष्मीः श्रीं॥ हृतनमः॥ निद्राभः॥ स्मृतिर्गः॥ लांतिमोवः // सनेत्रोहरि ति // उच्छिष्टचांडास्वरूपम् // नेत्रयुता लक्षंजपेद्विल्वपत्रैर्जुहुयात्तदशांशतः॥ पूर्वोदितेयजेत्पीठेषडंगत्रिदशायुधैः॥ 63 // रात्रौसंपूज्यदे वेशीमयुतंपुरतोजपेत् // शयीतब्रह्मचर्येणभूमौदर्भास्थिताजिनः॥ 64 // देव्यैनिवेद्यस्वंहाईसास्वप्ने वदतिध्रुवम् // यक्षिण्याद्याइतिप्रोच्यमातंगीगद्यतेधुना॥६५॥ तारोमायाचवाग्लक्ष्मीनिंद्रास्मृति लांतिमाः॥ सनेत्रोहरिरुच्छिष्टचांडानेत्रयुताक्रिया॥६६॥श्रीमातंगेश्वरिपदंसर्वशूलीनलांतशम्।।करिव ह्निप्रियामंत्रोद्वात्रिंशद्वर्णवानयम्॥६॥मतंगोमुनिरस्योक्तोनुष्टुप्छंदस्तुदेवता॥मातङ्गीसर्वजनतावशी करणतत्परा॥६॥चतुर्भिःषभिरंगैश्चर्षडष्टनयनैरपि।मंत्रोस्यवर्णैरंगानिन्यस्यदेवी विचिंतयेत्॥६९॥ क्रियालि // श्रीमातंगेश्वरिसर्वेतिस्वरूपम् // शूलीजः॥ नस्वरूपम् // लांतोवः // शंस्वरूपम् // करिस्वरूप पम् // वहिप्रियास्वाहा // 66 // 67 // 68 // 69 // / 1 ह्रीश्रींनमोभगवतिउच्छिष्टचांढालिश्रीमातंगेश्वरिसर्वजनवशंकरिस्वाहा // अस्पमंत्रस्यमतंगऋषिरनुष्टुपूछंदोमातंगीदेवताममा भीष्टसिद्ध्यर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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