________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिबीजी // ऐंग्लौंऐमिति // सर्गाढ्यं ठचतुष्टयं // ठठाठाठः // वेदरुद्राक्षरः // चतुर्दशोत्तरशतार्णः // शीघ्रंवश्यंकुरुद्वंद्वंत्रिवीजीठचतुष्टयम् // सर्गाव्यंवर्मफट्स्वाहावेदैरुद्राक्षरोमः॥ 70 // प्रणवादिमु | निश्छंदःशिवोतिजगतीतथा // वार्तालीदेवताप्रोक्तावालिहृदयंस्मृतम् // 71 // वाराहीति शिरःप्रोक्तंशिखावाराहमुख्यपि // अंधेअंधिनिवोक्तंरुंधेरुधिनिनेत्रकम् // 72 // जंभेजभिनिचास्त्रं स्यात्ततोध्यायेत्तुदेवताम् // रक्तांभोरुहकर्णिकोपरिगतेशावासनेसस्थितांमुंडस्रपरिराजमानह दयांनीलाश्मसद्रोचिषम् // हस्ताजैर्मुशलंहलाभयवरान्संबिभ्रतींसत्कुचांवार्तालीमरुणांबरांत्रिनयनां वंदेवराहाननाम् // 73 // सप्तदशसहस्राणिप्रजपेत्तदशांशतः॥ तिलैबधूककुसुमैर्जुहुयान्मधुरान्वितैः॥ // 74 // पूजायंत्रमथोवक्ष्येजपादिनवशक्तिकम् // स्वर्णेरुप्येतथातानेभूर्जपत्रेथदारुणि // 75 // // 70 // 71 // 72 // ध्यानमाह ॥रक्तेति / / मुसलवरौदक्षयोः॥ 73 // 74 // 7 // 1 ॐऐंग्लौंऐनमाभगवतिवार्तालिवाराहिवाराहिवाराहमुखिऐंग्लौंअंधेअंधिनिनमोरुंधेरुधिनिनमोजभेजभिनिनमामोहेमोहिनिनमोस्त भेस्तंभिनिनमोऐंग्लासर्वदुष्टप्रदुष्टानांसर्वेषांसर्ववाक्पदचित्तंचक्षुर्मुखगतिजिह्वास्तंभकुरुकुरुऐंग्लौंऐंठ ठाठ ठहुंफट्स्वाहा 114 // 2 अस्य 38 |श्रीवातालीमंत्रस्यशिवऋषिःजगतीछंदःवार्तालीदेवताममाखिलावाप्तयेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only