________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानमाह // विद्युदिति।पाशमुद्गरौदक्षयो|अंकुशशक्तीवामयोरूर्वाधस्थयोः॥ नेत्रजैर्वीतिहोत्रैरग्निभिर स्माकमरिसमूहंनाशयतु // 33 // वसुलक्षमष्टलक्षहयारिजैःकरवीरैः // हृयादित्याशीलिङ्॥३४॥ दिगि विद्युद्रोचिर्हस्तपāर्दधानापाशशक्तिमुद्गरंचांकुशंच // नेत्रोद्भूतवीं तिहोत्रिनेत्रावाराहीन शत्रुवर्गक्षिणो तु // 33 // वसुलक्षंजपित्वांतेविल्वपत्रैईयारिजः॥धात्रीफलै गराजैःकुशैहूयाद्दशांशतः॥३४॥ पूर्वोदितेयजेत्पीठेषडंगैर्दिगिनायुधैः // एवंसिद्धमनुमंत्रीयोजपेत्शनिग्रहे // 35 / / सृणिनाशत्रुमानी यवद्धापाशेनतंदृढम् // मुद्रेणन्नतीमूनितांस्मरन्नयुतंजपेत् // 36 // जुहुयादयुतंशुबैर्वनशुष्कैस्तुगो मयैः // प्रक्षिपेद्धोमजंभस्मवापीकूपादिपाथसि // 37 // तत्पानीयस्यपातारोम्रियतेरिपोध्रुवम् // निर्यातिहित्वास्थानवाविद्विपंतःपरस्परम् // 38 // शत्रुनिग्रहणेदशास्मरणादपिमंत्रिणाम् // प्रकीर्तितेयंवाराहीधूमावत्यधुनोच्यते // 39 // सात्वतत्रितयंसार्पितत्राोचन्द्रशेखरौ // वैकुंठोऽ नन्तसंयुक्तोजलंनेत्रयुतोहरिः॥४०॥ नादिक्पालाः॥३५॥ मुणिनांकुशेन॥ ३६॥पाथसिजले // 37 // 38 // 39 // ज्येष्ठामंत्रमाह // सात्वतेति // साघिउयुतं // सात्वतत्रितयं धत्रयं // तेषुद्वौसबिंदू // *** // अनंतसंयुतोवैकुंठः ॥आयुतोमः॥ मा॥ज लंवः॥ नेत्रयुतोहरिः // इयुतस्तः // 40 // For Private and Personal Use Only