________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकथहचक्रमाह(१)॥ उर्ध्वगाइति // षोडशकोष्ठान्विधायतत्रैकत्येकादशनवद्विचतुर्द्वादशदशषडष्टषोडश चतुर्दशपंचसप्तपंचदशत्रयोदशेषुकोष्ठेषुक्रमादकारादिवर्णान्पुनःपुनविलिख्य कोष्ठचतुष्कसिद्धसाध्यादि विचिंत्यपुनश्चतुष्केसिद्धादिगणनकार्यम् // तत्रप्रथमचतुष्केयस्यांविदिशिनामार्णाद्वितीयादिचतुष्केषुतद्वि ऊर्द्धगाःपंचरेखाःस्युःपंचतिर्यग्गताःपुनः॥ कोष्ठानितत्रजायतेषोडशैवात्रसंलिखत् // 3 // भूराम शिवनंदाक्षिवेदादिग्रसाष्टभिः // कलामनुशरैरदितिथिविश्वमितेषुच // 4 // कोष्ठेषुमातृकावर्णा स्तत्रनामादितःक्रमात् // सिद्धःसाध्यासुसिद्धोरिज्ञेयोमन्वक्षरावधिः॥६॥ यस्मिंश्चतुष्केनामार्णस्त तस्यात्सिद्धचतुष्टयम् // प्रादाक्षिण्याद्वितीयंस्यात्साध्याख्यंतत्तृतीयकम् // 6 // सुसिद्धाख्यंचतुर्थ तुसपत्नाख्यस्मृतंबुधैः // एककोष्ठेद्वयोर्वर्णसिद्धसिद्धःप्रकीर्तितः // 7 // तद्वितीयेमंत्रवर्णेसिद्धसाध्य उदाहृतः॥ तृतीयसिद्धसुसिद्ध सिद्धारिःस्याचतुर्थके // 8 // दिशमारभ्यसिद्धादिगणयेत // एवंगणनेसिद्धसिद्धः१सिद्धसाध्यः२ सिद्धसुसिद्धः३सिद्धारिः४॥३॥ // 4 // 5 // 6 // 7 // 8 // For Private and Personal Use Only