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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म०ससंपातमआहुतिशेषस्यपात्रांतरेप्रक्षेपःसंपातः॥ तद्युतंहुत्वासंपाताज्यंस्त्रियैदद्यात् // किंभूतायै // विश्रा सटीक णितश्रियैदत्तदक्षिणायै॥दक्षिणामादावादायपश्चादाज्यंदद्यादित्यर्थः।अन्यथाफलाभावात् // 106 // 107 // // 57 // कामेशीमाहामायेतिमायाह्रीं।मन्मथः क्लीं।वाग्बीजऐं।ब्लू॥स्त्रीस्वरूपं॥१०८॥ध्यानमाह॥पाशेक्षुचापेवा गव्याज्येनससंपातंहुत्वासाष्टशतंनरः॥ आज्यसंपातितंदद्यातस्त्रियविश्राणितश्रिये // 6 // सातदाज्यं निजंकांतंभोजयित्वावनियेत् // सुगंधकुसुमैर्तुत्वाधनमाप्नोतिवांछितम् // 7 // मायामन्मथवाग्बी जे स्त्रीपंचाक्षरोमनुः // ऋषिश्छंदश्चपूर्वोक्तेकामेशीदेवतास्मृता // 8 // पाशांकुशाविक्षुशरासवाणौ करैवहतीमरुणांशुकाभ्याम् // उद्यत्पतंगाभिरुचिमनोज्ञांकामेश्वरीरत्नचितांप्रणौमि // 9 // भूतलक्षंज पित्वैनामर्द्धलक्षंपलाशजैः।।कुसुमैर्जुहुयात्पीठेपूर्वोक्तेपूजयेदिमाम्॥११०॥आदावंगानिसंपूज्यदिक्षुमध्ये मनोभवम्॥मकरध्वजकंदौमन्मथंकामदेवकम् // 11 // ततोह्यनंगरूपाद्याइंद्राद्यस्त्राणितहिः / / एवं सिद्धमनुमंत्रीपूर्वोक्तयोगमाचरेत् // 12 // इतिमंत्रमहोदधौयक्षिण्यादिमंत्रकथनंनामसप्तमस्तरङ्गः // 7 // मयो।उद्यन्यासहस्रांशुरादित्यस्तत्समकांतिरत्नश्चितांव्याप्तांप्रणौमिप्रकर्षेणस्तौमि॥१०९॥भूतलक्षपंचलक्ष ११०॥कामदेवमध्ये॥११॥योगं प्रयोग॥११२॥इतिमंत्रमहोदधिनौकायांयक्षिण्यादिकथनंसप्तमस्तरंगः 7 // Nan7 // 1 ह्रीक्लीऍब्लूंनीं // इतिपंचाणः / / अस्यकामेशीमंत्रस्यसंमोहनऋषिःगायबीछंदःकामेशीदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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