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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२ मं०म० 108 त्रैलोक्यमोहनगणेशमंत्रमाह॥वक्रेति॥स्वरूपंणांतस्तःकर्णेदुयुकाउबिंदुयुतः॥मन्मथक्लीं।मायाह्रीं। रमाश्रीं // गजमुखोग // भगीहरिः॥ एयुतस्तः॥ बालोवः।। अग्नीरसत्योदः॥रेफारूढजलंवं॥स्थिराजः॥ // 21 // सेन्दुर्मेषानं // उषर्बुधप्रियास्वाहा // स्वरूपमन्यत् // यथा॥ वक्रतुंडैकदंष्ट्रायक्कीह्रीं श्रीगंगणपते वरवरदस होमतोवशयेद्विश्वमर्ककाष्ठशुचावपि // खादिरानौनरपतिलक्ष्मीपायसहोमतः // 108 // वक्रकणे न्दुयुरुणान्तौडैकदंष्ट्रायमन्मथः।मायारमागजमुखोगणपान्तेभगीहरिः // 109 // वरवालाग्निसत्या सरे फारूढंजलंस्थिरा॥ सेन्दुम्म॑षोमेवशान्तेमानयोपर्बुधप्रिया // 110 // स्यात्रयस्त्रिंशदर्णाव्योमनुस्त्रै लोक्यमोहनः // गणकोस्यऋषिश्छंदोगायत्रीदेवतापुनः // 111 // त्रैलोक्यमोहनकरोगणेशोभक्त सिद्धिदः // रविवेदशरोद॑न्वसनेपडङ्गकम् // 112 // गदाबीजपूरेधनुःशूलचक्रेसरोजोत्पले पाशधीन्यायदन्तान् // करैःसंदधानंस्वशुंडाग्रराजन्मणीकुम्भमङ्काधिरूढंस्वपत्न्या // 113 // र्वजनंमेवशमानयस्वाहेतित्रयस्त्रिंशद्वर्णाः॥१०९॥११०॥१११॥ षडंगमाह॥रवीति॥उदन्वन्तश्चत्वारः॥११२॥ ध्यानमाह // गदेति // गदाबीजपूरशूलचक्रपद्मानिदक्षेषुअन्यान्यन्येषु // धान्यायव्रीहिमंजरी // 113 // 1 अस्यत्रैलोक्यमोहनकरगणेशमंत्रस्यगणकऋषिःगायत्रीछंद त्रैलोक्यमोहनकरोगणेशोदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः॥ // 21 // For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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