________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक म. म.lu४॥महाशंखकपालम् // 42 // 43 // 44 // 45 // 46 // पीठमंत्रमुद्धरति // भृग्विति // भृगुम NE न्विंदुसंयुक्तंसकारः // औंबिंदुयुतंमेघवर्त्महः // हार्देनमः // स्वरूपमन्यत् // हौंसरस्वतीयोगपीठात्म // 3 // |नेनमइति // 47 // 48 // 49 // नित्यबलिदानमंत्रमाह // तारइति // तारप्रणवः॥ मायाहीं॥भगमेकारः॥ial त० | एवंध्यायन्नदन्भक्ष्यमनेकंदधिमध्वपि // मधुमांसंचतांबूलंजपेल्लक्षचतुष्टयम् // 41 // दशांशंजुहुया द्रक्तपक्षीराज्यलोलितैःस्थापयित्वामहाशंखंजपस्थानेजपंचरेत्॥४२॥नारीपश्यन्स्पृशनुगच्छन्म हानिशिवलिंददेत् // नकार्यःसुभ्रुवांद्वेषोयत्नात्ताःपूजयेत्सदा॥४३॥जपेनकालनियमोनस्थितौसर्वदाज पेत्॥श्मशानशून्यसदनेदेवागारेथनिर्जने // 44 // पर्वतेवनमध्येवाशवमारुह्यमंत्रवित्॥समरेशत्रुनिहतं यद्वापाण्मासिकशिशुम् // 46 // विद्यांसंसाधयेच्छीघंसाधितैवंप्रसिध्यति // मेधाप्रज्ञाप्रभाविद्याधीधृति स्मृतिबुद्धयः॥४६॥विद्येश्वरीतिसंप्रोक्ताःपीठस्यनवशक्तयः॥भृगुमन्विदुसंयुक्तमेघवर्त्मसरस्वती॥४७॥ योगपीठात्मनेहार्दपीठस्यमनुरीरितः॥४८॥दत्त्वानेनासनंमूर्तिमूलमंत्रेणकल्पयेत्॥पूजयेद्विधिवद्देवींत द्विधानमथोच्यते॥४९॥तारोमायाभगंब्रह्माजटेसूर्यःसदीर्घखम्॥यक्षाधिपतयेतंद्रीमोपनीतंबलिंततः५० // 31 // ब्रह्माकः॥ जटेस्वरूपं // सूर्योमः॥ सदीर्घखंहा // तंद्रीमः॥ शिवाहीं। स्वरूपमन्यत् // यथा ॥ॐहीएकजटे महायक्षाधिपतयेममोपनीतंबलिंग्रहगृहहीं स्वाहेति // अनेननित्यंनिशीथेबलिंदद्यात् // 50 // ברמירסרהמסדרמוומרהמומדממורמררמורמררמהסרסון For Private and Personal Use Only