________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० 88 रिपुजिह्वाग्रहांमुद्रांदर्शयन्सर्वशत्रूनिगृहामीतिसंचिंत्यपादमूलेतारादिनमोतंमूलंन्यसेत् // सकललो सटीक ककर्ताहमितिबीजविचिंत्यत्रिखंडयामुद्रयाललाटेतारादिनमोतंमूलंन्यसेत् // 19 // 20 // मुखेसंवे Hष्टयंस्तारादिनमोंतमूलंन्यसेत् दक्षकर्णतोवामांतकंठान्मुखांतमेवमेवन्यसेत् // 21 // पुनःप्रणवपुटां त०११ त्रिखंडयामुद्रयातुभालेमूलंन्यसेत्तथा // त्रैलोक्यस्याखिलस्याहंकतॆतिस्वंविचिंतयेत् // 19 // रिपुजिह्वाग्रहांमुद्रांदर्शयन्सर्वविद्विषः // निगृह्णामीतिसंचिंत्यपादमूलेतथान्यसेत् // 20 // मुखे / संवेष्टयन्यस्येत्पुनर्दक्षिणकर्णतः // विन्यस्यवामकर्णातकंठावंततोन्यसेत् // 21 // तारसं पुटितांविद्यासागेविन्यसेत्पुनः // योनिमुद्रांमुखेबद्धानमेत्रिपुरसुंदरीम् // 22 // ब्रह्मरंध्रुहस्तमूले भालेविद्यांप्रविन्यसेत् // अंगुष्ठानामिकाभ्यांतुन्यासःसम्मोहनाभिधः // 23 // A B BIIICCII विद्यांसोगेन्यसेत् // मुखेयोनिमुद्रांबद्धातथैवदेवींन्यसेत् // 22 // अयंजगद्वशीकरणन्यासः // देवी कात्यांविश्वरक्तध्यायनंगुष्ठानामिकाभ्यांब्रह्मरंध्रेमणिबंधेललाटेविद्यांन्यसेदितिसंमोहनोन्यासः // 23 // For Private and Personal Use Only