________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुबेरध्यानमाह॥धनति // रत्नकरण्डोदक्षे // 82 // 83 // 84 // प्रत्यंगिरामाह॥दीर्घेति // मरुत्यकारः॥दी घेन्दुयुक् // आबिन्दुयुतःयां // ब्रह्माकः // लोहितः यः॥ तत्संस्थंमांसंलः॥ल्पयंतिनोरयः॥ क्रूरांकृत्यांवधू धनपूर्णस्वर्णकंभंतथारत्नकरंडकम // 8 // हस्ताभ्यांविप्लतंखर्वकरपादंचतंदिलम // वटाधस्तादनपी ठोपविष्टंसुस्मिताननम्॥८३॥एवंकृतहुतोमंत्रीलक्ष्म्याजपतिवित्तपम् // अथप्रत्यंगिरांवक्ष्येपरकृत्यावि मर्दिनीम् // 84 // दीर्घन्दुयुग्मरुद्ब्रह्मामांसलोहितसंस्थिताम् // यंतिनोरयउच्चार्यक्रूरांकृत्यांसमु चरेत् // 85 // वधूमिवपदंपश्चात्तांब्रह्मातेसदीर्षणः॥ अपनिर्गुमइत्यंतेप्रत्यकर्तारमृच्छतु // 86 // तारमायापुटोमंत्रःस्यात्सप्तत्रिंशदक्षरः // ब्रह्मानुष्टुप्मुनिश्छंदोदेवीप्रत्यांगरेरिता // 87 // मिवतांब्रह्मस्वरूपम् // सदीर्घोणःणा // अपनिर्णद्मइतिस्वरूपम् // प्रत्यकर्तारमृच्छतुस्वरूपम् // प्रणवमा याबीजसंपुटः॥८५॥८६॥८७॥ १ॐ ह्रींयांकल्पयंतिनोरयःकरांकृत्यांवधूमिवहांब्रह्मणाअपनिणुनःप्रत्यकर्तारमृच्छतुह्रींओमितिसप्तत्रिंशदक्षरः // 2 अस्यप्रत्यंगिराम चस्यब्रह्माऋषि-अनुष्टुपूछन्द देविप्रत्यंगिरादेवताओंबीजंह्रींशक्तिःममाखिलावाप्तयेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only