________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधमोक्षकृदेकोनविंशमाह ॥रोचनोति // हिमंचंदनम् // कांस्यपात्रेरोचनादिनाषोडशदलेमायाम् // दले स्वरान् // तदुपरिकादिसांतार्णयुक्तम् // द्वात्रिंशद्दलम् // तदुपरिकोणेषुहक्षयुतंचतुष्कोणंकृत्वासप्ताहपूजि रोचनाहिमकर्पूरकुंकुमै पद्मनालिखेत् // पोडशारस्वरैर्युक्तंदलंमायायकर्णिकम् // 118 // तस्योपरि टाद्वात्रिंशद्दलंव्यंजनयुग्दलम् // पद्मदिग्विदिशाहक्षयुक्तक्ष्मापुरवेष्टितम् // 119 // एतयंत्रकांस्य पात्रलिखितंसप्तवासरान् // पूजितंभूर्जलिखितंधृतंवाबद्धमोक्षकृत् // 120 // पूर्वोक्ताखिलयंत्राणांसि द्धिकामेनमंत्रिणा // उपास्यामातृकादेवीयद्वाभूतलिपिःपरा // 121 // यद्वोपास्योलेखकालेस्वर्णाकर्ष णभैरवः॥ प्रणवोवाग्भवंकामशक्तीदीर्घत्रयान्विते // 122 // सर्गीभृगुर्भयासेंदुरापदुद्धारणायच // अजामलांतेबद्धायडेन्तोलोकेश्वरस्तथा // 123 // स्वर्णाकर्षणभैरान्तेदी|बाल प्रभंजनः ॥ममदारि द्यविद्वेषणायान्तेप्रणवोरमा // 124 // तंबंधहरम् // 118 // 119 // 120 // उक्तयंत्रसिद्धयेमातृकाभूतलिपिभैरवाणामन्यतमउपास्यः॥ तत्रद्वेउ |भैरवमाह॥प्रणवइति॥१२॥१२२॥ भृगुःसाभयावः॥ 123 // दीर्घोबालावाप्रभंजनोयारमाश्रीः॥१२४॥ For Private and Personal Use Only