________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie यंत्रमाह॥षट्कोणइति // धतूररसाक्तहरिद्राचूर्णेनषट्कोणेऽमुकंस्तंभयेतिवर्णयुतंहीमितिबीजंविलिख्यमं वशेषाणैःसंवेष्टयोपरिचतुरस्रेणवेष्टितंपीतसूत्रवीतंकृत्वा भ्रमत्कुंभकारचक्रस्थमृदारचितवृषोदरेप्रक्षिप्यहरि षट्कोणेविलिखेद्रीजंसाध्यनामान्वितंमनोः॥हरितालनिशाचूर्णैरुन्मत्तरससंयुतैः॥२५॥शेषाक्षरैःसमावी / तंधरागेहविराजितम् // तयंत्रस्थापितप्राणपीतसूत्रेणवेष्टयेत् // 26 // भ्राम्यत्कुलालचक्रस्थांगृही / त्वामृत्तिकांतया // रचयेदृषभंरम्यंयंत्रंतन्मध्यतःक्षिपेत् // 27 // हरितालेनसंलिप्यवृषप्रत्यहमर्च | येत् // स्तंभयद्विद्विषांवाचंगतिकार्यपरंपराम् // 28 // आदायवामहस्तेनप्रेतभूमिस्थखर्परम् // अंगारेणचितास्थेनतत्रयंत्रसमालिखेत् // 29 // मंत्रितंनिहितंभूमौरिपूणांस्तंभयेद्गतिम् // प्रेतवस्त्रेलिखेयंत्रमंगारेणैवतत्पुनः // 30 // मंडूकवदनेन्यस्येत्पीतवस्त्रेणवेष्टितम् // पूजितंपी तपुष्पैस्तद्वाचंसंस्तंभयेद्विषाम् // 31 // तालेनसंलिप्यवृषंप्रत्यहंपूजयेत् स्तम्भनफलम् // 25 // 26 // 27 // 28 // 29 // 30 // 31 // For Private and Personal Use Only