________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिकरपंचविंशमाह ॥रोचनोति // भूर्जेरोचनादिभिःपूर्वापरायतंदक्षिणोत्तरायतंचरेखाष्टकंकृत्वातत्रब हिःकोष्ठपंक्तिष्वीशानादिष्वादिजांतांस्तदंतःपंक्तिषुसादिभातान् / / तदंतःपंक्तिषुमादिसांतान्मध्येहंविलि रोचनामृगकर्पूरकुंकुमै शोभनेदिने // भूर्गप्रविलिखेद्यलेखन्याजातिजातया // 105 // प्राक्प्रत्य ग्दक्षिणोदक्चकुर्य्यादेखाष्टकंसमम्।।एवमेकोनपंचाशजायतेकोष्ठकास्ततः॥१०६॥ दिग्गतांतिमपंक्ति स्थांश्चतुर्विंशतिवर्णकान् // अकारादिजकारांताल्लिखेच्चन्द्रसमन्वितान् // 107 // तदंतर्गत क्तिस्थाञ्झादिभांतांश्चषोडश // तदंतस्थान्मादिसांतान्हकारंशिष्टकोष्टके // 108 // रेखाग्रेषुत्रि शलानिकुर्वीतरदसंख्यया // उपर्य्यधस्त्रिशलांतहल्लेखासप्तकंलिखेत् // 109 // एवंविलिख्यत यंत्रपूजयेदिवसत्रयम् // चंडीपाठकरोविप्रभोजकोभूमिशायकः // 110 // ततोलोहत्याविष्टंधारये होष्णिवागले // उपसर्गाःकलि कृत्याःशमंयांतिविधारणात् // 111 // ख्यरेखाग्राणिसंवर्ध्यत्रिशूलाकाराणियंत्रपूर्वभागेपश्चिमेत्रिशूलमध्यभागेषुसप्तसुहींसप्तकंकृत्वोक्तविधिनापू जिताम् // दोष्णिबाहौधृतमुक्तफलदम्॥मातृकादेवता // 105 // 106 // 107 // 108 // 109 // 110 // 111 // Pre For Private and Personal Use Only