________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie नित्यामंत्रमाह // भैरवीति // प्राक्क्रमात्पश्चिमादुक्रमातंबालयायुतात्रिपुरभैरवी // ततःपंचबाणवी जानि // एषामन्वक्षरचतुर्दशार्णानित्येरिता // यथा // लंऐंक्लींसौम्झौं० // सक्तींहस्रौंसौक्लींऐंद्रींक्लींब्लूस नित्याश्रीपादुकांपू० // 25 // नीलपताकिनीमंत्रमाह ॥तारइति // तारॐ // मायाह्रीं // फांतरेफौफरौ। तौझिंटीशशशिसंयुतौ // एबिंदुयुतौ // फ्रें // हंसःसः॥ अन्य(शबिंद्वाढयाइऊबिंदुयुतः॥ हृल्लेखाहीं॥ भैरवीवालयायुक्ताप्रापश्चाच्चक्रमोत्क्रमात्।।तदंतपंचवाणाःस्युनित्यामन्वक्षरेरिता // 25 // तारो मायाफांतरेफौझिंटीशशशिसंयुतौ // हंसोग्य(शविद्वाढ्योहल्लेखांकुशनित्यमः॥२६॥ दद्वेवर्मशृं ण्यंताप्रोक्तानीलपताकिनी // चतुर्दशाक्षरासर्वत्रैलोक्याकर्षणक्षमा // 27 // वराहहंसचंडीशजनार्दन कृशानवः॥ पद्मनाभेदुसंयुक्ताविजयायैनमोतिकः // 28 // अंकुशकों॥ नित्यमदद्वेस्वरूपं // वर्महुँ // सृणिःक्रों // यथा // ऐंहींफ्रेंवहींक्रोंनित्यमदद्रवेहुंक्रोनी लपताकिनीनित्याश्रीपादुकांपू० // 26 // 27 // विजयामंत्रमाह // वराहेति // वराहोहः // हंसासः // चं डीशःखः॥ जनार्दनःफः॥ कृशानूरः॥ एतेपद्मनाभेंदुसंयुक्ताः // एबिंदुयुताः॥ एतत्कूटम् // स्वरूपमन्यत्॥ यथा // ऐंहूस्ख्यविजयायैनम:विजयानित्याश्रीपादु०॥२८॥ For Private and Personal Use Only