________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०४ मं०म० त्रिखंडांमुद्रांबवा // ॐसोममंडलायनमइतितोयेचंद्रमंडलंसंपूज्यैकादशाणेनमंत्रेणाष्टवारंजलंमंत्रयेत् // त्रिखंडालक्षणयथा // परिवर्त्यकरौस्पष्टावंगुष्ठौकारयेत्समौ // अनामांतर्गतेकृत्वातर्जन्योकुटिलाकृती // // 34 // कनिष्ठिकेनियुंजीतनिजस्थानेमहेश्वरि // त्रिखंडेयंसमाख्यातात्रिपुराह्वानकर्मणीति // एकादशार्णमाह // वागिति // वाऐं // शक्ति ह्रीं // पद्माश्रींरेफानुग्रहबिंदुयुक्गगनं ॥रेफ औबिंदुयुतोहः॥ हौं।मूलमंत्र पूर्वो क्तःपंचार्णः॥हंसमनुसर्गसमन्वितंवियत् // सऔ॥विसर्गयतोहाहसौदीपिकेंद्वाढयोवराहः ऊ॥ बिंदुयुतो मुद्रां त्रिखंडांसंदर्यपूजयेचंद्रमंडलम् // वाकशक्तिपद्मागगनरेफानुग्रहबिंदुयुक् // 80 // मूलमंत्रो वियद्धंसमनुसर्गसमन्वितम् // वराहोदीपिकेंद्राव्योमनुरेकादशाक्षरः॥ 81 // अष्टकृत्वोमुनामंत्रीमं त्रयेत्प्रयतोजलम् // माययामदिरांक्षित्वाशंखयोनिचदर्शयेत् // 82 // हः॥ हूं।यथा // ह्रींश्रीं ह्रौं ॐ द्वांत्रीहूंफदहसौमिति // 80 // 81 // ततोह्रींबीजेनतोयेसुरांप्रक्षिप्यशं खयोनिमुद्रदर्शयेत् // तयोर्लक्षणंयथा // वामांगुष्ठंतुसंगृह्यदक्षहस्तस्यमुष्टिना // कृत्वोत्तानंतथामुष्टिमं Silगुष्ठंतुप्रसारयेत् // वामांगुल्यस्तथाशिष्टाःसंयुताःसुप्रसारिताः // दक्षिणांगुष्ठकेलग्नामुद्राशंखस्यभूति देतिशंखमुद्रालक्षणम् // मिथःकनिष्ठिकेबद्भातर्जनीभ्यामनामिके // अनामिकोर्श्वसंश्लिष्टदीर्घमध्यमयो रधः॥ अंगुष्ठानद्वयंन्यस्येद्योनिमुद्रेयमीरितेतियोनिमुद्रालक्षणम् // 82 // For Private and Personal Use Only