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प्रथम अध्ययन - गौतम स्वामी का चिन्तन
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पीव (मवाद) और रुधिर में परिणत-परिवर्तित हो गया। मृगापुत्र ने पीव व रुधिर रूप में परिवर्तित उस आहार का वमन कर दिया और तत्काल उस वमन किये हुए पदार्थ को वह चाटने लगा अर्थात् वह बालक अपने द्वारा वमन किये हुए पीव रुधिर आदि को भी खा गया।
गौतम स्वामी का चिन्तन ___तए णं भगवओ गोयमस्स तं मियापुत्तं दारगं-पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए ५ समुप्पजित्था - अहो णं इमे दारए पुरापोराणाणं दुचिणाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ, ण मे दिवा णरगा वा णेरइया वा पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे णरयपडिरूवियं वेयणं वेएइत्तिक? मियं देविं आपुच्छड़, आपुच्छित्ता मियाए देवीए गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता मियग्गामं णयरं मज्झमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं तुन्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे मियग्गामं णयरं मझंमज्झेणं अणुप्पविसामि जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागए, तए णं सा मियादेवी ममं एज्जमाणं पासइ पासित्ता हट्ठा तं चेव सव्वं जाव पूयं च सोणियं च आहारेइ, तए णं मम इमे अज्झथिए० समुप्पजित्था-अहो णं इमे दारए पुरा जाव विहरइ ॥२१॥ - कठिन शब्दार्थ - अज्झथिए - विचार, समुप्पज्जित्था - उत्पन्न हुए, पोराणाणं - प्राचीन, दुच्चिण्णा - दुष्चीर्ण-दुष्टता से उपार्जन किये गये, दुप्पडिकंताणं - दुष्प्रतिक्रान्त-जो धार्मिक क्रियानुष्ठान से नष्ट नहीं किये गये हों, असुभाणं - अशुभ, पावाणं - पापमय, कडाणकम्माणं - किये हुए कर्मों के, पावगं - पाप रूप, फलवित्तिविसेसं - फल वृत्ति विशेष-विपाक का, पवणुभवमाणे - अनुभव करता हुआ, णरयपडिरूवियं - नरक के प्रतिरूप-सदृश, पच्चक्खं - प्रत्यक्ष, वेयणं - वेदना का, वेएइ - वेदन-अनुभव कर रहा है।
भावार्थ - तदनन्तर मृगापुत्र बालक की ऐसी दशा देखकर भगवान् गौतमस्वामी के मन में
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