________________
विपाक सूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्ध
भावार्थ इधर किसी समय मित्र नरेश स्नान यावत् दुष्ट स्वप्नों के फल को विनष्ट करने के लिये प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक एवं अन्य मांगलिक कार्य करके संपूर्ण अलंकारों से विभूषित हो मनुष्यों से घिरा हुआ कामध्वजा गणिका के घर पर गया। वहां उसने कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य संबंधी भोगों को भोगते हुए उज्झितक कुमार को देखा, देखते ही वह क्रोध में लाल पीला हो गया, मस्तक में त्रिवलिक भृकुटि चढ़ा कर अपने अनुचर पुरुषों द्वारा उज्झितक कुमार को पकड़वाया, पकड़वा कर लाठी, मुक्का, जानु और कूर्पर के प्रहारों से उसके शरीर को संभग्न, चूर्णित और मथित कर अवकोटक बंधन से बांधा और बांध कर वध करने योग्य है, ऐसी आज्ञा दी।
हे गौतम! इस प्रकार उज्झितक कुमार पूर्वकृत पुरातन कर्मों का यावत् फलानुभव करता हुआ समय व्यतीत कर रहा है।
उज्झितक कुमार का आगामी भव वर्णन
उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिड़ कहि उववज्जिहिs?
६४
-
गोयमा! उज्झियए दारए पणवीसं वासाई परमाउयं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे सूलीभिण्णे कर काले किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुंढवीए रइयत्ताए उववज्जिहिद, से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयट्टगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहि । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिंए गिद्धे गढिए अज्झोववणे जाए जाए वाणरवेल्लए वहेइ तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमुयारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे जयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहि ॥ ६० ॥
भावार्थ - हे भगवन्! उज्झितक कुमार यहां से कालमास में मृत्यु का समय आ जाने पर काल करके कहां जाएगा? कहां उत्पन्न होगा ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org