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प्रथम अध्ययन - सुबाहुकुमार का लालन पालन
२४५ ........................................................... 'सुबाहुकुमार' हो। इस प्रकार माता पिता ने उस बालक का गुण युक्त गुणनिष्पन्न सुबाहुकुमार ऐसा नाम किया।
सुबाहकुमार का लालन पालन . तएणं से सुबाहुकुमारे पंचधाई परिग्गहिए, तं जहा - खीरधाईए मंडणधाईए मज्जणधाईए कीलावणधाईए अंकधाईए अण्णाहिं च बहुहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणि-वडभि-बब्बरि-बउसि-जोणिय पल्हविणिया-इसिणिया धोरुगिणि-लासिय-लउसिय-दमिलि-सिंहलि-आरबि-उलिंदि-पक्कणिबहलि-मरुंडि-सबरि-पारसीहिं णाणादेसीहि विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय-चिंतियपंत्थिय-वियाणियाहिं सदेसणेवत्थगहियवेसाहिं णिउणकुसलाहिं विणीयाहिं चेडिया-चक्कवाल-वरिसहर-कंचुइज्ज-महयरगवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे परिगिज्जमाणे चालिजमाणे उवलालिज्जमाणे रम्मंसि मणिकोट्टिमतलंसि परिमिज्जमाणे परिमिज्जमाणे णिव्वाय-णिव्वाघायंसि गिरिकंदरमल्लीणेव चंपगपायवे सुहं सुहेणं वहइ॥१९७॥ ___कठिन शब्दार्थ - खीरधाईए- दूध पिलाने वाली धाय, मंडणधाईए - श्रृंगार कराने वाली धाय, मज्जणधाईए - स्नान कराने वाली धाय, कीलावणधाईए - क्रीड़ा कराने वाली धाय, अंकधाईए - गोद में लेकर क्रीड़ा कराने वाली धाय, खुज्जाहि:- टेडे शरीर वाली, चिलाइयाहिं - चिलात देश में उत्पन्न हुई, वामणि - बावना शरीर वाली, वडभि - बड़े पेट वाली, बब्बरि - बर्बर देश में उत्पन्न हुई, बउसि - बकुश देश की, जोणिय - योनिक देश की, पल्हविणिया - पल्हव देश की, इसिणिया - इसिनिक देश की, धोरुगिणि - धोरुकिन देश की, लासिय - लासक देश की, लउसिय - लकुसिक देश की, दमिलि - द्राविड़ देश की, सिंहलि - सिंहली देश की, आरबि - अरब देश की, उलिंदि - पुलिंद देश की, पक्कणि - पक्कन देश की, बहलि - बहल देश की, मरुंडि - मुरुंड देश की, सबरि - शबर देश की, पारसीहिं - पारस देश की, णाणादेसीहिं - नानादेशों की, विदेसपरिमंडियाहिदेश विदेशों के परिमण्डन को जानने वाली, इंगियचिंतियपत्थिय वियाणियाहिं - इङ्गित यानी
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