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प्रथम अध्ययन - सुबाहुकुमार का कला शिक्षण
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विवेचन - राजा और रानी ने अपने पुत्र का 'सुबाहुकुमार' ऐसा गुण निष्पन्न नाम रखा। पांच धायमाताओं तथा अनेक देश की दासियों द्वारा लालन पालन किया जाता हुआ वह सुबाहुकुमार पर्वत की गुफा में रहे हुए चम्पकवृक्ष को समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा।
पुत्र के लिए माता-पिता के कौतुक तए णं तस्स सुबाहुस्स दारगस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं ठिइवडियं वा चंदसूरदंसावणियं वा जागरियं वा णामकरणं वा परंगामणं वा पयचंकमणं वा जेमामणं वा पिंडबद्धणं वा पज्जंपावणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं वा अण्णाणि य बहूणि गब्भाधाणजम्मणमाइयाई कोउयाई करेंति॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - ठिइवडियं - स्थिति पतित अर्थात् अपने कुल की मर्यादा के अनुसार पुत्र जन्मोत्सव आदि, परंगामणं - घुटनों से चलना, पयचंकमणं - पैरों से चलना, जेमामणंभोजन कराना, पिंडवद्धणं - ग्रास का बढ़ाना, पज्जंपावणं - उच्चारण करवाना, कण्णवेहणंकानों का छिदाना, संवच्छर पडिलेहणं - वर्षगांठ मनाना, चोलोयणगं - चोटी रखाना, उवणयणं- उपनयन यानी कला ग्रहण करवाना, गम्भाधाणजम्मणमाइयाई - गर्भाधान और जन्म आदि के, कोउयाई - कौतुक।
भावार्थ - इसके पश्चात् सुबाहुकुमार बालक के माता-पिता अनुक्रम से स्थिति पतित अर्थात् अपने कुल की मर्यादा के अनुसार पुत्रजन्मोत्सव आदि यावत् चन्द्रसूर्य दर्शन, रात्रि जागरण, नामकरण, घुटनों से चलना, पैरों से चलना, भोजन कराना, ग्रास का बढ़ाना, उच्चारण करवाना, कानों का छिदाना, वर्षगांठ मनाना, चोटी रखाना, उपनयन यानी कला ग्रहण करवाना और अन्य बहुत से गर्भाधान और जन्म आदि के कौतुक करने लगे।
सुबाहुकुमार का कला शिक्षण तएणं तं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो साइरेगअट्ठवासजायगं चेव गब्भट्ठमे वासे सोहणंसि तिहिकरणमुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेति। तए णं से कलायरिए सुबाहुकुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं
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