Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 292
________________ । प्रथम अध्ययन - भगवान् का आगमन २७१ ........................................................... बल्कि वे सदा उतने ही परिमाण में रहते थे जितने कि शोभनिक मालूम हो। उनका शरीर का वर्ण स्वर्ण सरीखा था। सर्वाङ्ग सुन्दर और रोगादि से रहित था और उत्तम पुरुष के १००८ लक्षणों से युक्त था। भगवान् का आगमन अणासवे अममे अकिंचणे छिण्णसोए णिरुवलेवे ववगयपेमरागदोसमोहे णिग्गंथस्स पवयणस्स देसए सत्थणायगे पइटावए समणगपई समणगविंदपरिअट्टए चउत्तीस बुद्धवयणाइसेसपत्ते पणतीससच्चवयणाइसेसपत्ते आगासगएणं चक्केणं आगासगएणं छत्तेणं आगासगयाहिं सेयवरचामराहिं आगासफलिहामएणं सपायपीढेणं सीहासणेणं धम्मज्झएणं पुरओ पकढिज्जमाणेणं चउद्दसहिं समणसाहस्सीहिं छत्तीसाए अज्जिआसाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपब्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे. हत्थिसीसे णयरे पुप्फकरंडे उज्जाणे वण्णओ पुढविसिलापट्टए वण्णओ तहेव समोसरइ॥२०७॥ कठिन शब्दार्थ - अणासवे - आस्रवों से रहित, अममे - ममत्वभाव रहित, अकिंचणेअकिञ्चन-परिग्रह से रहित, छिण्णसोए - शोक रहित, णिरुवलेवे - निरुपलेप, ववगयपेमरागदोसमोहे. - प्रेम, राग, द्वेष, दोष और अज्ञान मोह से रहित, णिग्गंथस्स पवयणस्स- निर्ग्रन्थ प्रवचन के, देसए - उपदेशक, सत्थणायगे - उपदेशों के नायक, पइटावएप्रतिष्ठापक-स्थापना करने वाले, समणगपई - श्रमण संघ के अधिपति, समणगविंदपरिअट्टएसाधुओं के समूह को बढ़ाने वाले, चउत्तीसबुद्धवयणाइसेसपत्ते - तीर्थंकर के वचनादि चौतीस अतिशयों से युक्त, पणतीससच्चवयणाइ सेसपत्ते - सत्य वचन के पैंतीस अतिशयों से युक्त, आगासगएणं चक्केणं - आकाश में धर्मचक्र, आगासगएणं छत्तेणं - आकाश में छत्र, आगासगयाहिं सेयवरचामराहिं - आकाश में उत्तम सफेद चंवर, आगासफलिहामएणं सपायपीटेणं सीहासणेणं- आकाश में स्वच्छ स्फटिक रत्नों का सिंहासन, धम्मज्झएणं पुरओ पकढिज्जमाणेणं - चलते समय उनके आगे आगे धर्म ध्वजा, पुवाणुपुव्विं - अनुक्रम से, पुढविसिलापट्टए - पृथ्वी शिलापट्ट। भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी प्राणातिपात आदि आश्रवों से रहित थे, ममत्व भाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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