Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 357
________________ वरदत्ते णामं दसमं अज्ायणं वरदत्त नामक दसवां अध्ययन दसमस्स उक्खेवो-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं णाम णयरं होत्था। उत्तरकुरुजाणे, पासमिओ जक्खो, मित्तणंदी राया, सिरीकंता देवी, वरदत्ते कुमारे, वीरसेणापामोक्खा पंचसयकण्णा, पाणिग्गहणं, तित्थयरागमणं, सावगधम्म, पुव्वभवो-सयदुवारे णयरे, विमलवाहणे राया, धम्मरुइ णामं अणगारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पडिलाभिए समाणे संसार परित्तीकए, मणुस्साउए णिबद्ध, इह उप्पण्णे सेसं जहा सुबाहुकुमारस्स पोसहचिंता जाव पव्वज्जा, कप्पंतरिओ जाव सव्वट्ठसिद्धे। तओ महाविदेहे वासे जहा सुबाहुकुमारो जाव सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिणिव्वाहिइ, सव्वदुक्खाणमंतं करिहिह। . एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। सेवं भंते! सेवे भंते!! ॥२४४॥ ॥दसमं अज्झयणं समत्तं॥ ॥बीओ सुयक्खंधो समत्तो॥ __ कठिन शब्दार्थ - सावगधम्मं - श्रावक धर्म को, एज्जमाणं - गोचरी के लिए आते हुए, संसार परित्तीकए - संसार परित्त किया, मणुस्साउएणिबद्धे - मनुष्य आयु बांधा, पोसहचिंता - पौषध में आध्यात्मिक विचार उत्पन्न हुआ, पव्वज्जा - दीक्षा अंगीकार की, कप्पंतरिओ - अनुक्रम से देवलोकों में, अयम? - यह अर्थ, पण्णत्ते - फरमाया है। भावार्थ - दसवें अध्ययन का अर्थ कहा जाता है - हे आयुष्मन् जंबू! उस काल उस समय में साकेत नाम का नगर था। उसके बाहर उत्तरकुरु उद्यान था। उसमें पाशमिक यक्ष का यशायतन था। वहां मित्रनंदी नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम श्रीकांता था। उनके वरदत्तकुमार नामक पुत्र था। वीरसेना आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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