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भद्दणंदी णामं अहमं अज्झयण
भद्रनन्दी नामक आठवां अध्ययन
अट्ठमस्स उक्खेवो - सुघोसं णयरं, देवरमणं उज्जाणं, वीरसेणो जक्खो, अज्जुणो राया, तत्तवई देवी, भद्दणंदीकुमारे, सिरीदेवी पामोक्खा पंचसयकण्णा, पाणिग्गहणं जाव पुव्वभवो - महाघोसे णयरे धम्मघोसे गाहावई, धम्मसीहे अणगारे पडिला भए जाव सिद्धे ॥ २४२ ॥
भावार्थ अब आठवें अध्ययन का अर्थ कहा जाता है - सुघोष नामक एक नगर था । उसके बाहर देवरमण उद्यान था । उसमें वीरसेन नाम यक्ष का यक्षायतन था । वहाँ अर्जुन राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम तत्त्ववती था। उनके भद्रनन्दी नाम का कुमार था । श्रीदेवी आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया। एक समय वहां तीर्थंकर भगवान् पधारे। गणधर महाराज ने भद्रनन्दी कुमार का पूर्वभव पूछा । तीर्थंकर भगवान् ने फरमाया कि- पूर्वभव में यह महाघोष नगर में धर्मघोष गाथापति था। इसने धर्मसिंह अनगार को भावपूर्वक आहारादि बहरा कर प्रतिलाभित किया यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गया।
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विवेचन • भद्रनन्दीकुमार ने पूर्व भव में धर्मसिंह मुनि को भक्तिभाव पूर्वक सुपात्रदान दिया फलस्वरूप वे इस भव में सिद्ध हो गये यावत् सभी दुःखों का अंत कर दिया।
॥ इति अष्टम अध्ययन समाप्त ॥
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