Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 353
________________ धणवई णामं छडं अज्झयणं धनपति नामक Bठा अध्ययन छट्टस्स उक्खेवो-कणगपुर णयरं, सेयासोयं उज्जाणं, वीरभद्दो जक्खो, पियचंदो राया, सुभद्दादेवी, वेसमणे कुमारे जुवराया, सिरीदेवी पामोक्खा पंचसयकण्णा, पाणिग्गहणं, तित्थयरागमणं, धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो, मणिवया णयरी, मित्तो राया, संभूइविजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे॥२४०॥ भावार्थ - अब छठे अध्ययन का अर्थ कहा जाता है - कनकपुर नाम का एक नगर था। उसके बाहर श्वेताशोक उद्यान था। जिसमें वीरभद्र नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ के राजा का नाम प्रियचन्द्र और रानी का नाम सुभद्रा था। उनके युवराज का नाम वैश्रमण कुमार था। श्रीदेवी आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया। वैश्रमणकुमार के पुत्र का नाम धनपति था। एक समय तीर्थंकर भगवान् वहां पधारे। गणधर महाराज ने धनपति का पूर्वभव पूछा। तीर्थंकर भगवान् ने फरमाया कि - मणिपदा नगरी में मित्र नामक राजा था। उसने संभूति विजय अनगार को भावपूर्वक आहारादि बहरा कर प्रतिलाभित किया। यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गया। विवेचन - सुखविपाक सूत्र के इस छठे अध्ययन में धनपति कुमार का वर्णन है। धनपति कुमार के जीव ने पूर्व भव में सुपात्रदान दिया फलस्वरूप उसी भव में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गये। ॥ इति षष्ठ अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362