Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 354
________________ महब्बले णामं सत्तमं अज्झयणं महाबल नामक सातवां अध्ययन सत्तमस्स उक्खेवो-महापुरं णयरं, रत्तासोगं उज्जाणं, रत्तपाओ जक्खो। बले राया, सुभद्दादेवी, महब्बले कुमारे, रत्तवईपामोक्खा पंचसयकण्णा, पाणिग्गहणं जाव पुव्वभवो, मणिपुरं णयरं, णागदत्ते गाहावई, इंदपुरे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे॥२४१॥ भावार्थ - अब सातवें अध्ययन का अर्थ कहा जाता है - महापुर नामक एक नगर था। उसके बाहर रक्ताशोक उद्यान था। उसमें रक्तपाद यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ बल राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम सुभद्रा था। उनके महाबलकुमार पुत्र था। रक्तवती आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया। एक समय वहाँ तीर्थंकर भगवान् पधारे। गणधर भगवान् के पूछने पर भगवान् ने उसका पूर्वभव बतलाया कि यह पूर्वभव में मणिपुर नगर में नागदत्त गाथापति था। उसने इन्द्रपुर नामक अनगार को भावपूर्वक आहारादि बहरा कर प्रतिलाभित किया यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गया। विवेचन - इस सातवें अध्ययन में महाबलकुमार का वर्णन है। महाबलकुमार के जीव से नागदत्त गाथापति के भव में इन्द्रपुर अनगार को सुपात्रदान दिया फलस्वरूप वे महाबलकुमार के भव में ही सिद्ध हो गये। ॥ इति सप्तम अध्ययन समाप्त। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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