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सुवासवे णामं चउत्थं अज्झयणं
सुवासव नामक चौथा अध्ययन चउत्थस्स उक्लेवो - विजयपुरं णयरं, णंदणवणं उज्जाणं, असोगो जक्खो वासवदत्ते राया, कण्हा देवी, सुवासवे कुमारे, भद्दापामोक्खा पंचसयकण्णा, . जाव पुव्वभवे कोसंबी णयरी, धणपाले राया, वेसमणभद्दे अणगारे पडिलाभिए, इह जाव सिद्धे बुद्धे, मुत्ते, परिणिव्वाए, सव्वदुक्खाणमंतं कडे ॥२३८॥
भावार्थ - अब चौथे अध्ययन का अर्थ कहा जाता है। विजयपुर नाम का नगर था। नगर . के बाहर नंदन वन नामक उद्यान था। उसमें अशोक यक्ष का यक्षायतन था। वासवदत्त नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम कृष्णा था और पुत्र का नाम सुवासवकुमार था। भद्रा आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया था। एक समय भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। गौतम स्वामी ने उसके पूर्व भव के विषय में पूछा। भगवान् ने फरमाया कि सुवासवकुमार का जीव पूर्व भव में कौशाम्बी नगरी का धनपाल राजा था। उसने वैश्रमण भद्रमुनि को भाव पूर्वक आहारादि बहरा कर प्रतिलाभित किया। यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गया। शीतलीभूत हुआ और सब दुःखों का अंत किया।
विवेचन - चतुर्थ अध्ययन में सुवासवकुमार का वर्णन है। इस अध्ययन में भी सुपात्रदान के उत्तम फल का वर्णन किया गया है। सुवासवकुमार ने तप संयम की आराधना कर उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लिया।
॥इति चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥
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