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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
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श्रीदेवी आदि पांच सौ कन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया। एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। उनका धर्मोपदेश सुन कर उसने श्रावक धर्म अंगीकार किया।
___ तत्पश्चात् गौतमस्वामी ने भद्रनन्दी कुमार के पूर्व भव के विषय में पूछा। भगवान् ने फरमाया कि हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र में पुण्डरीकिणी नगरी में यह विजयकुमार था। एक समय इसने युगबाहु तीर्थंकर को उत्कृष्ट भाव पूर्वक आहारादि बहराया। अब यहाँ ऋषभपुर में उत्पन्न हुआ है। दीक्षा लेकर प्रथम देवलोक में जायगा। फिर सुबाहुकुमार के समान मनुष्य और देव का भव करता हुआ इस भव से पन्द्रहवें भव में महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष में जायगा यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर सब दुःखों का अन्त करेगा।
विवेचन - प्रथम अध्ययन में सुबाहुकुमार का जीवन वृत्तान्त श्रवण करने के बाद जम्बूस्वामी को दूसरे अध्ययन का भाव जानने की उत्कंठा होती है। इसी को सूत्रकार ने “बिइयस्स 'उक्खेवो" शब्द से व्यक्त किया है। दूसरे अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना इस प्रकार है -
"जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरे णं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते?"
अर्थात् :- यदि हे भगवन्! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक सूत्र के प्रथम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ वर्णन किया है तो हे भगवन्! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया .
जंबूस्वामी की इस जिज्ञासा के समाधान में आर्य सुधर्मा स्वामी ने भद्रनन्दी कुमार का जीवन वृत्तांत कहा है। भद्रनंदी कुमार का वर्णन भी सुबाहुकुमार के समान ही है। सुपात्रदान के प्रभाव से अंत में वे भी सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे। इस प्रकार सुपात्रदान से मानव प्राणी की जीवन नौका संसार सागर से अवश्य पार हो जाती है।
॥ इति द्वितीय अध्ययन समाप्त॥
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