Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 347
________________ ३२६ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से उपरोक्त अर्थ सुनकर गौतम गणधर बोले कि हे भगवन्! जैसा आप फरमाते हैं ऐसा ही है, ऐसा ही है। इतना कह कर भगवान् को वन्दना नमस्कार करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। श्री सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहा कि हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक सूत्र के पहले अध्ययन का यह अर्थ फरमाया है। हे आयुष्मन् जम्बू! मैंने जैसा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना है, वैसा ही कहा है। ॥इति प्रथम अध्ययन समाप्त॥ विवेचन - सुपात्रदान की महानता और पावनता सुबाहुकुमार के संपूर्ण जीवन से स्पष्ट सिद्ध हो जाती है। सुमुख गाथापति के भव में उसने सुपात्रदान दिया था, उसी का यह महान् फल है कि सुबाहुकुमार का जीव परम्परा से मोक्ष स्थान को प्राप्त करेगा। सांसारिक पदार्थों की आसक्ति दुःख का कारण है। इनसे विरक्त हो कर आत्मानुराग ही वास्तविक सुख का यथार्थ साधन है। मानव जितना जितना इन बाह्य पदार्थों से विमुख होगा उतना उतना मोह कम होगा और वह वास्तविक सुख की उपलब्धि में अग्रसर होगा और आध्यात्मिक शांति को प्राप्त करता चला जाएगा। स्थायी सुख की प्राप्ति के लिए सांसारिक पदार्थों का संसर्ग, अर्थात् इन पर से अनुराग का त्याग करना परम आवश्यक है। यही प्रस्तुत अध्ययनगत सुबाहुकुमार की कथा का सार है। ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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