Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 346
________________ प्रथम अध्ययन - भविष्य कथन और सिद्धि गमन ३२५ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ बुद्ध होंगे, मुच्चिहिइ - आठों कर्मों से मुक्त होंगे, परिणिव्वाहिइ - निर्वाण को प्राप्त होंगे, सव्वदुक्खाणमंतं करिहिइ - सब दुःखों का अन्त करेंगे। भावार्थ - गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछा कि हे भगवन्! सुबाहुकुमार का जीव सर्वार्थसिद्ध विमान से चव कर कहां जायगा? कहां उत्पन्न होगा? । भगवान् ने फरमाया कि हे गौतम! सुबाहुकुमार का जीव सर्वार्थसिद्ध विमान से चव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्तमकुल में जन्म लेगा। वह कुल धन धान्यादि से परिपूर्ण, समृद्ध, प्रतापी दानादि गुणों से प्रसिद्ध, बहुत भवन, शयन, आसन, यान, वाहन आदि युक्त और बहुत से दास-दासी, गाय, भैंस आदि से युक्त होगा। पूरे नौ मास व्यतीत होने पर माता एक सुंदर बालक को जन्म देगी। पांच धायों द्वारा लालन पालन किया जाता हुआ वह बालक युवावस्था को प्राप्त होगा किन्तु वह बालक जलकमलवत् भोगों में लिप्त नहीं होगा। तथारूप के स्थविर मुनियों का उपदेश सुन कर वह धर्म के मर्म को समझ कर गृहस्थावस्था का त्याग कर दीक्षा अंगीकार करेगा। क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि दस विध यतिधर्म का सम्यक् पालन करता हुआ विविध प्रकार के तप द्वारा घाती कर्मों का क्षय करके सर्वोत्कृष्ट निरावरण, निर्व्याघात और परिपूर्ण केवलज्ञान, केवलदर्शन को प्राप्त करेगा। इस प्रकार वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी होकर तीनों लोकों को तथा तीनों कालों की समस्त पर्यायों को जानेंगे देखेंगे। यथा - जीवों की आगति, गति स्थिति, च्यवन, उपपात, तर्क, पश्चात् कृत, पूर्वकृत, मनोगत भाव, नष्ट हुआ, भोगा हुआ, किया हुआ, सेवन किया हुआ, प्रकट कार्य और अप्रकट कार्य सबको जानेंगे और देखेंगे। उनसे कोई बात छिपी न रहेगी। वे देव, मनुष्यों द्वारा पूजनीय होंगे। सर्वलोक के सर्व जीवों के उसउस समय में होने वाले मन, वचन, काया संबंधी सभी भावों को जानते हुए और देखते हुए विचरेंगे। - इस प्रकार वे सुबाहुकेवली बहुत वर्षों तक केवलि पर्याय का पालन करके अपने आयु कर्म का अंत जान कर अनेक भक्त प्रत्याख्यान द्वारा अनशन करेंगे। फिर जिस प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए दीक्षा ली थी और संयम में आने वाले बाईस परीषह उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन किया था तथा केशलोच ब्रह्मचर्य पालन आदि दुष्कर कार्य किये थे, उस प्रयोजन को सिद्ध करेंगे, सर्व अन्तिम श्वासोच्छ्वास लेकर निर्वाण को प्राप्त होंगे और सब दुःखों का अन्त करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362