Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 321
________________ ३०० विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध कुसग्गजलबिंदुसण्णिभे संज्झब्भरागसरिसे सुविणदंसणोवमे सडणपडणविद्धंसणधम्मे पच्छापुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणंति अम्मयाओ! के पुव्विं गमणाए के पच्छा गमणाए तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए।२२१। ___ कठिन शब्दार्थ - अधुवे - अध्रुव-सदा टिकने वाला नहीं है, अणियए - अनियत, असासए - अशाश्वत-एक ही क्षण में नष्ट हो सकता है, वसणसयउवद्दवाभिभूए - सैकड़ों दुःख और उपद्रवों से भरा हुआ है, विज्जुयाचंचले - बिजली के समान चंचल है; अणिच्चेअनित्य, जलबुब्बुयसमाणे - पानी के बुलबुले के समान क्षणिक, कुसग्ग जलबिंदुसण्णिभे - कुश के अग्रभाग पर पड़ी हुई पानी की बूंद के समान क्षणिक, संज्झन्भरागसमाणे - संध्या के समय की लालिमा के समान क्षणिक, सुविणदंसणोवमे - स्वप्न दर्शन के समान क्षणिक, सडणपडणविद्धंसणधम्मे - सड़ना, गलना और नष्ट होना ही जिसका धर्म (स्वभाव) है, पच्छापुरं - पहले या पीछे—कभी न कभी, अवस्सविप्पजहणिज्जे - इस शरीर को अवश्य छोड़ना पड़ेगा, के - कौन ? भावार्थ - तदनन्तर माता-पिता के इस प्रकार कहने पर वह सुबाहुकुमार माता-पिता के इस प्रकार कहने लगा कि हे माता-पिताओ! आपने मुझे जो यह कहा कि “तुम हमारे इकलौते पुत्र हों इसलिए हमारे मर जाने के बाद सब प्रयोजन साध कर फिर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा ले लेना' सो ठीक है किन्तु हे माता पिताओ! यह मनुष्य शरीर अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है। इसमें सैकड़ों दुःख भरे हुए हैं। यह बिजली की चमक के समान, जल के बुलबुलों के समान, डाभ पर पड़ी हुई पानी की बूंदे के समान, संध्या की लालिमा के समान और स्वप्न दर्शन के समान क्षणिक है। सड़ना, गलना और नष्ट होना ही इस शरीर का स्वभाव है। पहले या पीछे—कभी न कभी इसे अवश्य छोड़ना पडेगा किन्तु हे माता-पिताओ! यह कोई नहीं जानता कि पहले कौन मरेगा और पीछे कौन मरेगा? इसलिए आपकी आज्ञा लेकर मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।. ___ तए णं तं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरित्तयाओ सरिव्वयाओ सरिसलावण्णरूवजोव्वणगुणोववेयाओ सरिसेहितो रायकुलेहितो आणिल्लियाओ भारियाओ तं भुंजाहि णं जाया। एयाहिं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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