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' विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ........................................................... रूप हैं। इसमें मल, मूत्र, कफ, शुक्र, शोणित आदि महा घृणित पदार्थ भरे हुए हैं तथा शुक्र रज आदि घृणित पदार्थों से ही इसकी उत्पत्ति हुई है। यह शरीर और कामभोम सभी अनित्य, अशाश्वत और अध्रुव हैं। आगे या पीछे कभी न कभी इन्हें अवश्य छोड़ना पड़ेगा। यह कौन जानता है कि पति और पत्नी में से पहले कौन मरेगा और पीछे कौन मरेगा? अतः हे मातापिताओ! आपकी आज्ञा लेकर मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।
तए णं तं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमे य ते जाया! अज्जयपज्जय पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणसंतसार-सावतिज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं तं अणुहोहि त्ति ताव जाव जाया! विउलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्सासि॥२२४॥
कठिन शब्दार्थ - अज्जयपज्जय-पिउपज्जयागए - दादा, परदादा और पिता के परदादा से चला आया, कंसे - कांसी, दूसे - वस्त्र, मणिमोत्तिय-संखसिलप्पवालरत्तरयणसंतसारसावतिज्जे - मणि, मोती, शंख, शिला (राजपट्ट) प्रवाल (मूंगा) लालरत्न आदि समस्त द्रव्य विद्यमान है, आसत्तमाओ कुलवंसाओ - सात पीढ़ी तक, पगामं - इच्छानुसार, दाउं - दान दिया जाय, भोत्तुं - भोगा जाय, परिभाए3 - बांटा जाय, अलाहि अणुहोहित्तितो भी समाप्त न हो, इहिसक्कारसमुदयं - ऋद्धि, सत्कार, सम्मान आदि का भोग करो, अणुभूयकल्लाणे - कल्याण यानी सुखों का उपभोग करके। .
भावार्थ - इसके पश्चात् सुबाहुकुमार के माता-पिता उसको इस प्रकार कहने लगे कि हे पुत्र! दादा परदादा आदि वंश परम्परा से चला आया यह सोना, चांदी, मणि, मोती, वस्त्र आदि द्रव्य इतना है कि सात पीढ़ी तक खूब दान दिया जाय, भोगा जाय और अपने कुटुम्बियों को बांटा जाय तो भी समाप्त न हो। इसलिए हे पुत्र! मनुष्य संबंधी यह विपुल ऋद्धि सम्पत्ति प्राप्त हुई है उसका उपभोग करो। सांसारिक सुखों का उपभोग करने के बाद फिर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा ले लेना। - तए णं से सुबाहुकुमारे अम्मापियरं एवं वयासी-तहेव णं अम्मयाओ! जण्णं तुम्भे ममं एवं वयह-“इमे ते जाया! अज्जयपज्जय० जाव तओ पच्छा अणुभूय
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