Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 334
________________ प्रथम अध्ययन - दीक्षा की तैयारी ३१३ पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु (एक प्रकार का मृग) अष्टापद, चमरी गाय, हाथी, वनलता और पद्मलता के चित्रों से शोभायमान, घंटावलिमहुरमणहरसरं - घंटियों के समुदाय के मधुर और मनोहर शब्द से युक्त, सुभकं तदरिसणिज्ज - शुभ, कान्त और दर्शनीय, णिउणोवचियमिसिमिसंतमणिरयण-घंटियाजाल परिक्खित्तं - चतुर कारीगरों द्वारा बनाई गई देदीप्यमान मणि और रत्नों की बनी हुई घंटियों से व्याप्त, अब्भुग्गयवइरवेइया परिगयाभिरामंवज्र की बनी हुई ऊंची वेदिका से युक्त, विज्जाहरजमलजंतजुत्तं - विद्याधरों की चलती फिरती, पुतलियों के जोड़े से युक्त, अच्चीसहस्समालिणीयं - हजारों किरणों से युक्त, रूवगसहस्सकलियं- हजारों रूपों से युक्त, भिसमाणं - चमकती हुई, भिन्भिसमाणं - खूब चमकती हुई, चक्खुल्लोयणलेस्सं - अतिशय दर्शनीय, पुरिससहस्स वाहिणी - हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली, सीयं - पालकी। - भावार्थ - इसके बाद सुबाहुकुमार के माता-पिता ने सुबाहुकुमार को उत्तर की तरफ रखे हुए सिंहासन पर बैठा कर सोने और चांदी के कलशों से दो तीन बार स्नान कराई। फिर रुएंदार सुगंधित रंगीन वस्त्र से उसके शरीर को पोंछ कर सरस बावने चंदन का लेप किया, फिर स्वच्छ वस्त्र पहनाये, वस्त्र पहना कर एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली हार तथा अठारहलड़ा हार और नवसर हार, मुद्रिकाएं, कन्दोरा आदि सब आभूषण पहनाये। ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम और संघातिम, ये चार प्रकार की मालाएं पहना कर उसे अलंकृत और विभूषित किया। तदनन्तर अदीन शत्रु राजा ने सेवकों को बुला कर आज्ञा दी कि सुन्दर दर्शनीय एवं सब विशेषणों से विशिष्ट एक हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली पालकी लाओ। राजा की आज्ञा पाकर सेवक लोग पालकी ले आये। सुबाहुकुमार उस पालकी पर चढ़ कर पूर्व की तरह मुंह करके सिंहासन पर बैठ गया। ___ तएणं तस्स सुबाहुकुमारस्स माया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा सीयं दुरूहइ दुरूहित्ता सुबाहुकुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासणंसि णिसीयइ। तएणं तस्स सुबाहुकुमारस्स अंबधाई रयहरणं पडिग्गहगं च गहाय सीयं दुरूहइ दुरूहित्ता सुबाहुकुमारस्स वामे पासे भद्दासणंसि णिसीयइ। तएणं तस्स सुबाहुकुमारस्स पिट्टओ एगावरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगयगयहसियभणियचिट्ठिय मिलाससंलावुल्लावणिउणजुत्तोवयारकुसला आमेलग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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