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प्रथम अध्ययन - दीक्षा ग्रहण
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भगवान् ने सुबाहुकुमार के माता पिता के इस कथन को अच्छी तरह सुना। इसके पश्चात् ईशान कोण में जाकर सुबाहुकुमार ने स्वयं अपने हाथों से आभरण, फूलमाला और अलंकारों को उतार दिया। उसकी माता ने उन्हें हंस के समान एक सफेद कपड़े में ले लिया। फिर वह पुत्र वियोग से दुःखित होकर जलधारा, निर्गुण्डी के फूल और मोतियों के समान आंसू गिराती हुई, रोती हुई, क्रन्दन और विलाप करती हुई इस प्रकार बोली कि - हे पुत्र! संयम में यत्न करना, अप्राप्त गुणों को प्राप्त करना और संयम में पराक्रम करना। किंचित् मात्र भी प्रमाद न करना। हमारा भी यही मार्ग हो। इस प्रकार कह कर सुबाहुकुमार के माता पिता भगवान् को वन्दना नमस्कार करके वापिस लौट गये।
.. दीक्षा ग्रहण ... तएणं से सुबाहुकुमारे पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवांगच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता गमंसित्ता एवं बयासीआलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्तपलित्ते गं भंते! लोए जराए मरणेण-य। से जहाणामए केई गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगुरुए तं गहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ। एस मे णित्थारिए समाणे पच्छा पुरा हियाए सुहाए खेमाए णिस्सेसाए अणुगामियत्ताए भविस्सइ। एवामेव मम वि एगे आया भंडे इढे कंते पिए मणुण्णे मणामे। एस मे णित्थारिए समाणे संसारवोच्छेयकरे भबिस्सइ। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहिं सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सेहावियं, सिक्खावियं सयमेव आयारगोयर-विणय- वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं। , __ तएणं समणे भगवं महावीरे सुबाहुकुमारं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव आयार जाव धम्ममाइक्खाइ। एवं देवाणुप्पिया! गंतव्वं चिट्ठियव्वं जिसीयव्वं तुयट्टियव्वं भुंजियव्वं भासियव्वं एवं उहाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं, अस्सिं च णं अटेणो पमाण्यव्वं तएणं से सुबाहुकुमारे
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