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प्रथम अध्ययन - दीक्षा की तैयारी
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बैठे हुए सुबाहुकुमार के आगे निम्नलिखित ये आठ मांगलिक पदार्थ चलने लगे - १. स्वस्तिक २. श्रीवत्स ३. नन्दावर्त ४. वर्द्धमान ५. सिंहासन ६. पूर्ण कलश ७. मत्स्य युगल और ८. दर्पण। बहुत से याचक पुरुष इष्ट वचनों से बारम्बार अभिनंदन और स्तुति करते हुए इस प्रकार कहने लगे कि - "हे आनंद के देने वाले! तुम्हारी जय हो। हे कल्याण के देने वाले! तुम्हारी जय हो। नहीं जीती हुई इन्द्रियों को जीतो। विघ्नों को पार कर श्रमण धर्म का पालन करो। सिद्धि प्राप्त करो। राग द्वेष रूपी पहलवानों को तप द्वारा पराजित कर दो। आठ कर्म रूपी शत्रुओं का विनाश करो। शुक्लध्यान द्वारा सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान को प्राप्त करके शाश्वत अविचल परमपद को प्राप्त करो। परीषह रूपी सेना को जीत कर परीषह और उपसर्गों से निर्भय बन जाओ तुम्हारा श्रमण धर्म सब प्रकार से निर्विघ्न होवे।"
तत्पश्चात् सुबाहुकुमार हस्तिशीर्ष नगर के बीचोंबीच होकर निकला, निकल कर पुष्पकरण्डक उद्यान में पहुँचा। वहां पहुंच कर पुरुष सहस्रवाहिनी पालकी से नीचे उतरा।।
तएणं तस्स सुबाहुकुमारस्स अम्मापियरो सुबाहुकुमारं पुरओ कटु जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - एस, णं देवाणुप्पिया! सुबाहुकुमारे अम्हं एगे पुत्ते इढे कंते पिए मणुण्णे मणामे वीसासिए जीवियऊसासए हिययाणंदजणए उंबरपुप्फ विव दुल्लहे सवणयाए किमंगपुण पासणयाए, से जहाणामए उप्पले इ वा पउमे इ वा कुमुए इ वा पंके जाए. जले संवहिए णोवलिप्पड़ पंकरएणं, णोवलिप्पड़ जलरएणं, एवामेव सुबाहुकुमारे कामेसु जाए भोगेसु संवहिए, णोवलिप्पइ कामरएणं, णोवलिप्पइ भोगरएणं । एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउम्विग्गे भीए जम्मणजरामरणाणं इच्छइ देवाणुप्पिया अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं तुम्हे देवाणुप्पिया! सिस्सभिक्खं।
तएणं समणे भगवं महावीरे सुबाहुकुमारस्स अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे एयमटुं सम्मं पडिसुणेइ। तएणं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स
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