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३१६ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
............. कुंद के फूल, पानी का वेग, मथे हुए अमृत के फेन के समूह के समान सफेद, चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंडं - चन्द्रकांत मणि और वैडूर्यमणि से जड़ी हुई डांडी वाले, तालियंट - पंखे को, पुव्वदक्खिणेणं - पूर्व दक्षिण यानी आग्नेय कोण में, विमलसलिलपुण्णंनिर्मल जल से भरी हुई, मत्तगयमहामुहाकिइसमाणं - मदोन्मत्त हाथी के बड़े मुंह के जैसी आकार वाली, भिंगारं - झारी को, एगाभरणवसणगहिय-णिज्जोयाणं - एक समान आभरणं
और पोषाक पहने हुए, कोडुंबियवरतरुणाणं सहस्सं - एक हजार जवान सेवकों को, तप्पढमयाए- सबसे प्रथम, अट्ठट्ठ मंगलगा - आठ मांगलिक, अत्यत्थिया - याचक पुरुष, अणवरयं - बारम्बार, अभिणंदंता - अभिनंदन करते हुए, अभित्थुणंता - स्तुति करते हुए, : जियविग्यो - विघ्नों को जीत कर, रागदोसमल्ले - राग द्वेष रूपी पहलवानों का, णिहणाहिविनाश करो, धिइधणियबद्धकच्छे - अत्यंत धीरता के साथ कमर कस कर, अट्ठकम्मसत्तू - आठ कर्म रूपी शत्रुओं का, महाहि - मर्दन करो, वितिमिरं - देदीप्यमान, पावय - प्राप्त करो, परीसहचमुं - परीषह रूपी सेना को, हंता - जीतो, परीसहोवसग्गाणं - परीषह उपसर्गों से, अभीओ - निर्भय होओ, अविग्यं - निर्विघ्न।
भावार्थ - इसके पश्चात् सुबाहुकुमार की माता स्नान करके और वजन में हल्के किंतु कीमत में भारी बहुमूल्य आभूषणों को पहन कर पालकी पर सवार हुई और सुबाहुकुमार के दाहिनी तरफ भद्रासन पर बैठ गई। सुबाहुकुमार की धायमाता अपने हाथ में रजोहरण और पात्र लेकर सुबाहुकुमार के बाईं तरफ भद्रासन पर बैठ गई। इसके बाद एक अत्यंत रूपवती सुंदर तरुण स्त्री सुबाहुकुमार के पीछे बैठी। वह हाथ में छत्र लेकर सुबाहुकुमार के शिर पर धारण किये हुए थी। दो सुंदर तरुण स्त्रियां सुबाहुकुमार के दोनों तरफ खड़ी होकर सुबाहुकुमार पर चंवर ढोलने लगी। एक सुंदर तरुण स्त्री सुबाहुकुमार के सामने खड़ी होकर पंखे से हवा करने लगी। एक सुंदर तरुण स्त्री सुबाहुकुमार के पूर्व दक्षिण में यानी आग्नेय कोण में निर्मल जल से भरी हुई एक झारी लेकर खड़ी रही। इसके बाद अदीनशत्रु राजा ने अपने सेवकों को बुला कर कहा कि-हे देवानुप्रियो! एक समान, एक समान रंग वाले, एक समान उम्र वाले और एक समान पोषाक वाले एक हजार पुरुषों को बुला लाओ। सेवक लोग तत्काल गये और राजा की आज्ञानुसार एक हजार पुरुषों को बुला लाये। तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने सुबाहुकुमार की पुरुष सहस्रवाहिनी पालकी उठाने के लिये उनको आज्ञा दी। राजा की आज्ञा सुन कर हर्षित होकर उन एक हजार पुरुषों ने सुबाहुकुमार की पुरुष सहस्रवाहिनी पालकी उठाई। इसके पश्चात् पालकी पर
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