Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 332
________________ प्रथम अध्ययन - दीक्षा की तैयारी ३११ .......................................................... दुकान से रजोहरण और पात्र लाओ तथा एक लाख मोहरें देकर नाई को बुला लाओ। राजा की आज्ञा पाकर नौकरों ने खजाने से तीन लाख मोहरें निकाली फिर दो लाख मोहरें देकर वे कुत्रिक दूकान से रजोहरण और पात्र लाये तथा एक लाख मोहरें देकर नाई को बुला लाये। स्नानादि करके और सभा में जाने योग्य वस्त्र और आभूषण पहन कर नाई राजा अदीनशत्रु के सामने उपस्थित हुआ और बोला कि - हे राजन्! मेरे करने योग्य कार्य के लिए आज्ञा दीजिये। राजा ने नाई से कहा कि-सुगंधित गंधोदक से अपने हाथ पैर साफ धोकर और चार पुट वाले सफेद वस्त्र से मुंह बांध कर सुबाहुकुमार के दीक्षा के योग्य चार अंगुल छोड़ कर बाकी केशों को काटो। राजा की आज्ञानुसार. सुगंधित गंधोदक से अपने हाथ पैर धोकर और चार पुट वाले सफेद कपड़े से मुंह बांध कर उस नाई ने सुबाहुकुमार के दीक्षा के योग्य चार अंगुल छोड़ कर बाकी केशों को बड़ी सावधानी पूर्वक काटा। सुबाहुकुमार की माता ने उन कटे हुए सुंदर केशों को एक सफेद कपड़े में झेला, झेल कर उनको सुगंधित गंधोदक से धोया फिर सर्वोत्तम बावने चन्दन के छींटे दे कर सफेद वस्त्र में बांध लिया बांध कर रत्नों के डिब्बे में रख कर एक संदुक में रख दिया। फिर वह सुबाहुकुमार की माता, मोतियों के समान एवं जल की धारा के समान दुःसह पुत्र वियोग के कारण आंसू डालती हुई, रोती हुई, आक्रन्दन करती हुई और विलाप करती हुई इस प्रकार बोली कि - "अभ्युदय, पुत्र जन्म, इन्द्र उत्सव, तिथि, पर्व दिन आदि सब उत्सवों के समय हमारे लिए यही दर्शन सुबाहुकुमार का अन्तिम दर्शन होगा।" ऐसा कह कर उस बालों वाली संदूक को अपने सिरहाने रख लिया। दीक्षा की तैयारी - तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स अम्मापियरो उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयाति रयावित्ता सुबाहुकुमारं दोच्चं पि तच्चं पि सेयपीयएहिं कलसेहिं ण्हावेंति हावित्ता पम्हलसुउमालाए गंधकासाइयाए गायाइं लूहेंति, लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपति अणुलिंपित्ता णासाणीसासवायवोज्झं जाव हंसलक्खणं पडगसाडगं णियंसेंति णियंसित्ता हारं पिणद्धति पिणद्धित्ता अद्धहारं पिणद्धंति पिणद्धित्ता एवं एगावलिं मुत्तावलिं कणगावलिं रयणावलिं पालंबं पायपलंबं कडगाइं तुडियाई केऊराई अंगयाइं दसमुद्दियाणंतयं कडिसुत्तयं कुंडलाई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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