Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 331
________________ ३१० विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी रोयमाणी रोयमाणी कंदमाणी कंदमाणी विलवमाणी विलवमाणी एवं वासी-एस णं अम्हं सुबाहुस्स कुमारस्स अन्भुदएसु य उस्सवेसु य पसवेसु य तिहिसु य छणेसु य जण्णेसु य पव्वणीसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सइ त्ति कटु उसीसामूले ठवेइ॥२२६॥ कठिन शब्दार्थ - भण - कहो कि, दलयामो - देवें, किं ते हियइच्छिए सामत्थे - तुमको क्या इष्ट है, कुत्तियावणाओ - कुत्रिकापण से-देवता से अधिष्ठित होने के कारण जहाँ तीन लोक की सब चीजें मिल सके उसे कुत्रिकापण (कुत्रिक दूकान) कहते हैं, रयहरणं. - रजोहरण, पडिग्गहगं- पात्र, आणिउं - मंगवाना, कासवयं - नाई को, सिरिघराओ - खजाने से, गंधोदएणं- गन्धोदक से, हत्थपाए - अपने हाथ पैरों को, णिक्के - अच्छी तरह ‘साफ, पक्खालेह - धोवो, चउप्फालाए - चार पुट वाले, सेयाए - सफेद, पोत्तीए - वस्त्र से, णिक्खमणपाउग्गे - दीक्षा के योग्य, चउरंगुलवज्जे - चार अङ्गल छोड़ कर, अंग्गकेसे - सुंदर केशों को, कप्पेहि - काटो, परेण जत्तेणं - बड़ी सावधानी से, हंसलक्खेणं - हंस के समान सफेद अथवा हंस के चिह्न वाले, पडसाडएणं - वस्त्र में, सरसेणं गोसीसचंदणेणं - प्रधान गोशीर्ष (बावना) चंदन के, चच्चाओ - छींटे, रयणसमुग्गयंसि - रत्नों के डिब्बों में, हारवारिधारसिंदुवार छिण्णमुत्तावलिप्पगासाई - मोतियों की माला, जल की धारा तथा निर्गुण्डी के फूलों के समान सफेद, सुयवियोगदूसहाई - दुःसह पुत्र वियोग को सूचित करने वाले, अंसूइ - आंसू, विणिम्मुयमाणी - गिराती हुई, अब्भुदएसु - अभ्युदय के समय, उस्सवेसु - उत्सव के समय, पसवेसु - पुत्रादि के जन्मोत्सव में, तिहिसु - शुभ तिथियों में, छणेसु - इन्द्रादि के उत्सव के समय, जण्णेसु - नागपूजा आदि के उत्सव के समय, पव्वणीसु - पर्यों के समय, अपच्छिमे - अंतिम, दरिसणे - दर्शन, उसीसामूले- अपने सिरहाने, ठवेइ - रख दिया। ___ भावार्थ - इसके पश्चात् सुबाहुकुमार राजा हो गया तब उसके माता-पिता ने कहा कि हे पुत्र! कहो, तुम्हारी क्या इच्छा है? हम तुम्हारे लिए क्या इच्छित कार्य करें और क्या दें? तब सुबाहुकुमार ने कहा कि हे माता-पिताओ! मैं कुत्रिक दुकान से रजोहरण और पात्र मंगवाना चाहता हूँ और नाई को बुलवाना चाहता हूँ। तब अदीनशत्रु राजा ने नौकरों को बुला कर कहा कि जाओ, खजाने में से तीन लाख मोहरें निकाल कर ले जाओ। दो लाख मोहरें देकर कूत्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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