Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 325
________________ ३०४ - विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध संचरियव्वं, णो खलु कप्पड़ जाया! समणाणं णिग्गंथाणं आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा कीयगडे वा ठविए वा रइए वा दुन्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वद्दलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा, पायए वा। तुमं च णं जाया! सुहसमुचिए णो चेव णं दुहसमुचिए, णालं सीयं, णालं उण्हं, णालं खुहं, णालं पिवासं, णालं वाइयपित्तिय-सिंभिय-सण्णिवाइय विविहे रोगायके उच्चावए गामकंटए बावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्मं अहियासित्तए भुंजाहि ताव जाया! माणुस्सए कामभोगे तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स जाव पव्वइस्ससि ॥२२६॥ .. ____ कठिन शब्दार्थ - विसयाणुलोमाहिं - विषय के अनुकूल, आघवणाहि - सामान्य वचनों से, पण्णवणाहि - विशेष वचनों से, सण्णवणाहि - संबोधन वचनों से, विण्णवणाहिनम्र वचनों से, आपवित्तए - सामान्य रूप से, पण्णवित्तए - विशेष रूप से, सण्णवित्तए - संबोधन रूप से, विण्णवित्तए - नम्र रूप से, विसयपडिकूलाहिं - विषयों के प्रतिकूल, संजमभय उव्वेयकारियाहिं - संयम से भय और उद्वेग पैदा करने वाले, पण्णवणाहि पण्णवेमाणा - वचनों का प्रयोग करते हुए, पडिपुण्णे - गुणों से परिपूर्ण, णेयाउए - न्याय युक्त यानी अनेकान्तात्मक, संसुद्धे - शुद्ध, सल्लगत्तणे - तीन शल्यों से रहित, सिद्धिमग्गे - सिद्धि का मार्ग, मुत्तिमग्गे - मुक्ति का मार्ग, णिज्जाणमग्गे - निर्याण मार्ग यानी जन्म मरण के चक्र से निकलने का मार्ग, णिव्वाणमग्गे - निर्वाण का मार्ग, सव्वदुक्खपहीणमग्गे - सब दुःखों का नाश करने का उपाय, अहीव एगंतदिट्टीए- सर्प के समान एकाग्र दृष्टि, खुरो इव एगंतधाराए - एक धार वाले छुरे के समान निर्ग्रन्थ मार्ग पर चलना कठिन है, वालुयाकवलेरेत के ग्रास के समान, णिस्सारए - स्वाद रहित, पडिसोयगमणाए - प्रतिस्रोत गमन-पूर के सामने जाना कठिन, भुयाहिं दुत्तरे - भुजाओ से तैरना कठिन, चंकमियव्वं - आक्रमण कठिन है, आहाकम्मिए - आधाकर्मी, उद्देसिए - औद्देशिक, कीयगडे - खरीदा हुआ, ठविए - स्थापित, रइए - रचित-नवीन बनाया हुआ, दुभिक्खभत्ते - दुर्भिक्ष भक्त-दुर्भिक्ष पीड़ित प्राणियों के लिए बनाया हुआ, कंतारभत्ते - कान्तारभक्त-जंगल में दान देने के लिए बनाया हुआ, बदलियाभत्ते - पानी बरसने के समय अनाथ आदि के लिए बनाया हुआ, गिलाणभत्तेग्लान भक्त-रोगी के लिए बनाया हुआ आहार आदि, मूलभोयणे - भूल-जमीकंद का भोजन, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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