Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 300
________________ प्रथम अध्ययन - श्रावक धर्म ग्रहण २७६ पर उत्तरासंग करके दोनों हाथों को जोड़कर भगवान् के पास आया और भगवान् को तीन बार वन्दना करके उसने मन, वचन, काया से उनकी पर्युपासना-सेवा की। नावक धर्म ग्रहण तए णं समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्सकुमारस्स तीये य महइमहालियाए इसि जाव धम्मकहा कहिया, परिसा पडिगया। तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ट तुढे जाव हियए उठाए उठेइ उठाए उट्टित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासीसद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! णिग्गंथे पावयणं, अब्भुढेमि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेय भंते! असंद्धिद्धमेयं भंते! जाव से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कट्ट एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता एवं दुप्पडियारेणं भोगा राइण्णा इक्खागा णाया कोरव्वा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई पुत्ता अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबियकोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइस्स सत्थवाहपभिइओ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया। अहं अहण्णे णो संचाएमि जाव पव्वइत्तए। अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वयं सत्तसिक्खाव्वयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं मा पडिबंधं करेह। __ तए णं से सुबाहु कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वयं सत्तसिक्खाव्वयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता तमेव चाउग्घंट आसरहं दुरूहइ, दुरूहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं. पडिगए॥२१२॥ । कठिन शब्दार्थ - णिग्गंथं पावयणं - निर्ग्रन्थ प्रवचनों पर, सद्दहामि - श्रद्धा करता हूँ, पत्तियामि - प्रतीति करता हूँ, रोएमि - रुचि रखता हूँ, अब्भुढेमि - उद्योग करता हूँ, दुप्पडियारेणं - द्विप्रतिकार। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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