Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 309
________________ २८८ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ................koritetter........................... ___ उस समय में धर्मघोष आचार्य विचरते थे। उनके पाँच सौ शिष्य थे। एक समय ग्रामानुग्राम विहार करते हुए धर्मघोष आचार्य हस्तिनापुर के सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे। उनके सुदत्त नामक एक शिष्य थे वे मास मासखमण तप करते थे। एक समय मासखमण के पारणे के दिन सुदत्त अनगार ने पहले प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान दिया और तीसरे प्रहर में धर्मघोष आचार्य की आज्ञा ले कर हस्तिनापुर में प्रवेश किया। गोचरी के लिए ऊंच, नीच, मध्यम कुलों में समान रूप से घूमते हुए उन्होंने सुमुख गाथापति के घर में प्रवेश किया। सुदत्त अनगार को पधारते हुए देख कर सुमुख गाथापति बड़ा प्रसन्न हुआ, उस का रोम रोम खिल उठा, आसन से उठकर सात आठ कदम उनके सामने जा कर विनय पूर्वक वंदन नमस्कार किया और अपने रसोई घर की ओर आने लगा। “आज मैं स्वयं अपने हाथ से इन मुनिराज को पर्याप्त आहार पानी आदि चारों आहार बहराऊँगा" ऐसा सोचकर वह प्रसन्न हुआ। रसोई घर में आकर उसने निर्दोष अशनादि बहराया, आहार आदि देते समय और देने के बाद भी वह बड़ा प्रसन्न हुआ। द्रव्य, दाता, पात्र इन तीनों के शुद्ध होने से तथा तीनकरण और तीन योगों की शुद्धता पूर्वक आहार आदि देने से सुमुख गाथापति ने संसार परित्त किया और मनुष्य आयु का बंध किया। दान का महत्त्व प्रकट करने के लिए देवों ने उसके घर में पांच दिव्य प्रकट किये। फल स्वरूप हस्तिनापुर नगर के निवासी इस प्रकार कहने लगे कि 'यह सुमुख गाथापति धन्य है। पुण्यशाली है। इसका मनुष्य जन्म पाना सफल है। इसकी समस्त ऋद्धि भी सार्थक है। यह बारबार धन्य है।' इस प्रकार सब लोग सुमुख गाथापति की प्रशंसा करने लगे। श्रावक व्रतों का पालन ... से सुमुहे गाहावई बहूई वाससयाई आउयं पालेइ, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हत्थिसीसे णयरे अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णो। तए णं सा धारिणी देवी सयणिज्जंसि सुत्त जागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी तहेव सीहं पासइ, सेसं तं चेव जाब उप्पिं पासायवरगए विहरइ। तं एवं खलु गोयमा! सुबाहुणा इमा एयारूवा माणुस्सरिद्धि लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। ___ पहू णं भंते! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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