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प्रथम अध्ययन - महावीर स्वामी का समाधान
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उसी काल उसी समय में धर्मघोष स्थविर के शिष्य सुदत्त नामक अनगार उदार यावत् उन्होंने अपनी तेजोलेश्या को संक्षिप्त कर रखी थी। वे मासमासखमण यानी एक-एक महीने में पारणा करते हुए धर्म ध्यान में तल्लीन थे। तत्पश्चात् उन सुदत्त अनगार ने मासखमण के पारणे के दिन पहली पौरिसी में स्वाध्याय किया, दूसरी पौरिसी में ध्यान किया। तीसरी पौरिसी में धर्मघोष स्थविर अपने गुरु महाराज की आज्ञा लेकर ऊंच, नीच और मध्यम कुलों के घरों में सामुदानिक भिक्षा के लिए घूमते हुए सुदत्त अनगार ने सुमुख गाथापति के घर में प्रवेश किया। इसके बाद उस सुमुख गाथापति ने सुदत्त अनगार को आते हुए देखा, देख कर बहुत प्रसन्न हुआ
और आसन से उठ कर पादपीठ से नीचे उतरा, उत्तर कर पादुका (खडाऊ) को पैरों से उतार दिया। उतार कर बीच में बिना सिले हुए एक कपड़े का उत्तरासंग किया और सात आठ कदम सुदत्त अनगार के सामने गया। सामने जा कर तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा कर वंदना नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके जहाँ भोजन घर था वहाँ आया, आकर अपने हाथ से विपुल अशन, पानी, खादिम और स्वादिम इस चारों प्रकार के आहार का दान दूंगा ऐसा सोच कर प्रमुदित हुआ। दान देते समय भी आनंदित हुआ और दान देकर भी आनंदित हुआ। इसके पश्चात् उस सुमुख गाथापति के उस शुद्ध द्रव्य के द्वारा, दाता के शुद्ध होने से
और पात्र के शुद्ध होने से यानी द्रव्य, दाता और पात्र इन तीनों के शुद्ध होने से तथा तीन करण और तीन योगों की शुद्धि पूर्वक सुदत्त अनगार को आहार बहरा कर सुमुख गाथापति ने संसार परित्त किया और मनुष्य आयु का बन्ध किया। उसके घर पर ये पांच दिव्य प्रकट हुए। यथा - १. सौनयों की वर्षा हुई २. पांच वर्ण के फूलों की वर्षा हुई ३. दिव्य वस्त्रों की वृष्टि हुई ४. आकाश में देवदुंदुभि बजी और ५. आकाश में अहो दान! अहो दान!! यह शब्द हुआ। हस्तिनापुर में तिरस्तों चौरस्तों पर यानी छोटे बड़े सब रास्तों पर यावत् सड़कों पर जगह-जगह अनेक मनुष्य इस प्रकार कहने लगे, इस प्रकार भाषण करने लगे, इस प्रकार प्रतिपादन करने लगे एवं इस प्रकार प्ररूपणा करने लगे कि हे देवानुप्रियो! यह सुमुख गाथापति धन्य है, पुण्यवान् है, सुलक्षण है, इसका मनुष्य जन्म प्राप्त करना सफल है इसकी प्राप्त की हुई ऋद्धि सफल है यावत् यह धन्य है।
विवेचन - गौतम स्वामी के प्रश्न पूछने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया कि हे गौतम! इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नाम का एक नगर था। वह अत्यंत
सुन्दर एवं रमणीय था उसमें सुमुख गाथापति रहता था। वह ऋद्धिसम्पत्ति से संपन्न था और 'नगर में माननीय एवं प्रतिष्ठित था।
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