Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 306
________________ प्रथम अध्ययन - महावीर स्वामी का समाधान २८५ ........................................................... तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा णामं थेरा जाइसंपण्णा जहेव सुहम्मसामी तहेव पंचहिं समणसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपव्विं चरमाणा गामाणुगाम दुइज्जमाणा जेणेव हत्थिणाउरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। . तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सुदत्ते णामं अणगारे . उराले जाव संखित्ततेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरइ। तएणं से सुदत्ते अणगारे मासक्खणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ। बीयाए पोरिसीए झाणं झियाएइ। तइयाए पोरिसीए धम्मघोसे थेरे आपुच्छइ आपुच्छित्ता उच्चणीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पवितु। तएणं से सुंहमे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे जाव आसणाओ अब्भुढेइ अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहेइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ 'मुयइ, मुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता सुदत्तं अणगारं सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सएणं हत्थेणं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभिस्सामि त्ति तुढे पडिलाभेमाणे वि तुट्टे पडिलाभिए वि तुट्टे। तएणं तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धणं दायगसुद्धेणं पत्तसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परित्तीकए मणुस्साउए णिबद्धे गिहंसि य से इमाई पंचदिव्वाइं पाउन्भूयाइं तंजहा - १. वसुहारा वुट्ठा २. दसद्धवण्णे कुसुमे णिवाइए ३. चेलुक्खेवे कए ४. आहयाओ देव दुंदुहिओ ५. अंतरा वि य णं आगासंसि अहोदाणमहोदाणं घुट्टे य। हत्थिणाउरे सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खेइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ, धण्णे णं देवाणुप्पिए सुमुहे गाहावई सुकयपुण्णे कयलक्खणे सुलद्धे णं मणुस्स जम्मे सुकयत्थरिद्धि य जाव तं धण्णे॥२१४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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