Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 317
________________ २६६ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ........................................................... अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। तए णं धारिणी देवी तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं अस्सुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा णिसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्खेणं अभिभूया समाणी सेयागयरोमकूवपगलंत विलीणगाया सोयभर-पवेवियंगी णित्तेया दिणविमणवयणा करयलमलियव्वकमलमाला तक्खणओ लुग्गदुब्बलसरीरा लावण्णसुण्णणिच्छायगयसिरीया पसिढिलभूसण-पडत-खुम्मिय-संचुण्णिय धवलवलयपन्भट्ट-उत्तरिज़्जा सूमालविकिण्णकेसहत्था मुच्छावसणट्ठचेयगरुई परसुणियत्तव्व-चंपगलया णिव्वत्तमहव्वंइंदलठ्ठी विमुक्कसंधी बंधणा कोट्टिमतलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिया॥२१६ ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - धम्मे - धर्म, णिसंते - सुना है, इच्छिए - इष्ट-इच्छा करता हूँ, पडिच्छिए- अभिष्ट-बार-बार इच्छा करता हूँ, अभिरुइए - मुझे रुचता है, संपुण्णोसिपुण्यवान् हो, कयत्थोसि- कृतार्थ हो, कयलक्खणो वि - शुभ लक्षण वाले हो, अणिटुं - अनिष्ट, अकंतं - अकांतकारी, अप्पियं - अप्रियकारी, अमणुण्णं - अमनोज्ञ, अमणाणं - असुन्दर, अस्सुयपुव्वं - अश्रुतपूर्व, फरुसं - कठोर, गिरं - वचन को, मणोमाणसिएणं - मानसिक शोक से, सेयागयरोमकूवपगलंतविलीणगाया - रोम-रोम से पसीना निकलने से सारा शरीर भीग गया, सोयभरपवेवियंगी - शोक से शरीर थर-थर कांपने लगा, णित्तेया - निस्तेज, करयलमलियव्वकमलमाला - हाथ से मसलने से मुरझाई हुई कमल की माला के समान, तक्खणओलुग्गदुब्बलसरीरा - तत्क्षण उसका शरीर दुर्बल और रुग्ण हो गया, लावण्णसुवण्ण णिच्छायगयसिरीया - शरीर लावण्य शून्य हो गया और शरीर की शोभा नष्ट हो गई, पसिढिल भूसण पडत खुम्मिय संचुण्णिय धवलवलय पन्भट्ठ उत्तरिज्जा - शरीर दुर्बल होने से आभूषण ढीले हो गये, सफेद चूड़ियाँ धरती पर जा गिरी और टूट कर चूर चूर हो गयी, ओढ़ने का वस्त्र शिर से दूर हो गया, सूमाल विकिण्ण केसहत्था - शिर के कोमल केश इधर-उधर बिखर गये, मुच्छावसणट्टचेयगरुई - मूर्छा आने से चेतना नष्ट हो गई, परसुणियत्तव्वचंपगलया - परशु-कुल्हाड़ी से काटी हुई चम्पक बेल की तरह मुरझा गई, णिव्वत्तमहव्वइंदलट्ठी - उत्सव समाप्त होने पर इन्द्र स्तम्भ के समान शोभा रहित हो गई, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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