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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ...........................••••••••••••••••••••••••••••••••
भावार्थ - इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने सुबाहु कुमार को और उस महती सभा को धर्मकथा कही यानी धर्मोपदेश फरमाया। धर्मोपदेश सुन कर परिषद् वापिस लौट गई। तदनन्तर वह सुबाहुकुमार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्म सुन कर तथा हृदय में धारण कर बहुत हर्षित एवं संतुष्ट हुआ फिर वह उठ कर खड़ा हुआ, खड़ा होकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार वंदना नमस्कार कर इस प्रकार निवेदन किया-'हे भगवन्! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचनों पर श्रद्धा करता हूँ, प्रतीति करता हूँ, रुचि करता हूँ, उद्योग करता हूँ। हे भगवन्! निर्ग्रन्थ प्रवचन यही है जैसा कि आपने फरमाया है। ये निर्ग्रन्थ प्रवचन यथार्थ हैं, संदेह रहित है, यावत् जैसा आप फरमाते हैं वैसा ही निर्ग्रन्थ प्रवचन यथार्थ है, ऐसा कह कर वह इस प्रकार बोला कि - हे भगवन्! जिस प्रकार आपके पास बहुत से उग्रवंशी, उग्रवंशीकुमार, भोगवंशी, भोगवंशीकुमार, राजवंशी राजवंशीकुमार, इश्वाकु इश्वाकुकुमार, ज्ञातवंशी, ज्ञातवंशीकुमार, कुरुवंशी और कुरुवंशीकुमार, क्षत्रिय और क्षत्रियकुमार, ब्राह्मण और ब्राह्मणकुमार, शूरवीर और शूरवीरकुमार, योद्धा और योद्धाकुमार, प्रशास्ता यानी धर्मोपदेशक मल्लकी राज विशेष और उनके कुमार लेच्छकी राज विशेष और उनके कुमार आदि और अन्य बहुत से राजा, युवराज, बलवर यानी कोटवाल, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति और सार्थवाह आदि मुण्डित होकर गृह त्याग कर मुनि दीक्षा अंगीकार करते हैं किन्तु मैं अधन्य हूँ कि मैं दीक्षा लेने में समर्थ नहीं हूँ। हे भगवन्! मैं आपके पास पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत इस तरह बारह प्रकार के गृहस्थ धर्म यानी श्रावक धर्म अंगीकार करूंगा। भगवान् ने फरमाया कि हे देवानुप्रिय! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो वैसा करो किन्तु धर्मकार्य में किञ्चिन्मात्र भी प्रमाद मत करो।
इसके बाद सुबाहुकुमार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत, इस तरह बारह प्रकार के गृहस्थ (श्रावक) धर्म को अंगीकार किया। अंगीकार करके वह उसी चार घंटों वाले अश्वरथ पर सवार हुआ। सवार होकर वह जिस दिशा से आया था उसी दिशा में वापिस चला गया।
विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उस महती सभा को तथा सुबाहुकुमार को धर्मोपदेश फरमाया, धर्मोपदेश सुनकर सुबाहुकुमार ने भगवान् से अर्ज किया कि हे भगवन्! जिस प्रकार राजा महाराजा सेठ सेनापति आदि गृहस्थवास को छोड़ कर आपके पास दीक्षा लेते हैं उसी प्रकार मैं दीक्षा लेने में असमर्थ हूँ किन्तु पांच अणुव्रत (स्थूल प्राणातिपात त्याग, स्थूल मृषावाद त्याग, स्थूल अदत्तादान त्याग, स्वदार संतोष और परिग्रह परिमाण) और सात शिक्षा
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