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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध .......................................................... . भावार्थ - इसलिए ये बहुत से उग्रवंशी, भोगवंशी आदि लोग वहाँ जा रहे हैं। उनमें से कितनेक वन्दना करने के लिए, कितनेक पूजन करने के लिए, कितनेक सत्कार करने के लिए, कितनेक सम्मान करने के लिए, कितनेक दर्शन करने के लिए, कितनेक कुतूहल के लिए, कितनेक सूत्रों का अर्थ निश्चय करने के लिए, कितनेक पहले नहीं सुने हुए अर्थों को सुनने के लिए, कितनेक सुने हुए तत्त्वों में उत्पन्न शंका को दूर करने के लिए, कितनेक अर्थ, हेतु, कारण
और प्रश्न पूछने के लिए, कितनेक सर्व प्रकार से मुंडित होकर गृहस्थावास का त्याग कर साधु बनने के लिए, कितनेक पांच अणुव्रत, सात शिक्षा व्रत इस प्रकार बारह प्रकार का गृहस्थ धर्म यानी श्रावक व्रत अंगीकार करने के लिये कितनेक जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति में राग होने से.
और कितनेक अपने जीताचार यानी परम्परागत आचार का पालन करने के लिए स्नान करके. तिलक छापा आदि करके कौतुक और मांगलिक कार्य करके, मस्तक और गले में मालाएं धारण करके माणियों के और सोने के गहने पहन कर, लटकते हुए हार अर्द्धहार, तिलड़ाहार, लटकते हुए गुच्छों वाला कन्दौरा आदि सुन्दर आभूषण पहन कर बढ़िया बढ़िया वस्त्र पहन कर शरीर पर चंदन का लेप करके कोई घोड़े पर सवार होकर, कोई हाथी पर सवार होकर, कोई रथ में बैठ कर, कोई पालखी में बैठ कर कोई स्यंदमान यानी पुरुषाकार पालखी में बैठ कर और कितनेक पैदल चलते हुए जैसे क्षोभित हुआ, समुद्र गम्भीर शब्द करता है उसी प्रकार गंभीर हर्ष ध्वनि, सिंहनाद, अव्यक्त शब्द और कलकल शब्द करते हुए पुरुषों के समूह के समूह हस्तिशीर्ष नगर के बीचोबीच होकर बाहर जा रहे हैं।
विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के आगमन को सुन कर कितनेक उनकी सेवा, भक्ति एवं वंदन करने के लिए तथा कितनेक प्रश्न पूछ कर अपनी शंका को दूर करने के लिए स्नानादि करके उत्तम वस्त्राभूषण पहन कर कितनेक हाथी, घोड़े, रथ, पालखी आदि सवारी पर सवार होकर और कितनेक पैदल चलते हुए हस्तिशीर्ष नगर के बाहर पुष्पकरण्डक उद्यान में जाने लगे।
कौदम्बिक पुरुषों को आज्ञा तए णं से सुबाहुकुमारे कंचुइज्ज पुरिसस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ट० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटे आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवित्ता मम एयमाणत्तियं
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